राज्य बहाई परिषद केरल ने 24 से 27 जनवरी 2013 तक अपने 34वें शीतकालीन स्कूल का आयोजन किया, जिसमें केरल के अलावा
कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से आये 150 प्रतिभागियों ने भाग लिया।
प्रतिभागी |
कार्यक्रम के पहले दिन 24 जनवरी को नॉर्थ परवूर और अलवे क्लस्टरों के मित्रों द्वारा
युनिटी फीस्ट का आयोजन किया गया, जिसका उद्घाटन श्री बी0 अफशिन ने दीपक प्रदीप्त
करके किया। इस कार्यक्रम में मुख्य आकर्षण पिछले शीतकालीन स्कूलों
की स्लाइड शो प्रस्तुति थी, जिसके माध्यम से मित्रगण बीते हुए समय की याद ताजा कर सके। उनमें
से कुछ मित्र ऐसे थे जो 1978 से शीतकालीन स्कूल में भाग ले
रहे हैं वे थे-डॉ. के. एमरामानन्दन, श्री के. के. गोपी और श्री ए. गोपीनाथ।
कार्यक्रम के दूसरे दिन परिषद की सचिव श्रीमती बिनारा घनबरी ने
सभी उपस्थित मित्रों का स्वागत किया और शीतकालीन स्कूल के विषय
में बताया, जो विश्व न्याय मन्दिर के 28 दिसम्बर 2010 के संदेश को ध्यान में रखकर
चुना गया, जो हमें ‘‘नई विश्व व्यवस्था की दिशा में एक गमन उत्पन्न करने’’
के लिए स्पष्ट विवरण
देता है। वे इस क्षण की परिकल्पना ‘‘अटूट क्रम’’ के रूप करते हैं,
जो किसी
के साथ बहाई धर्म के बारे में साधारण बातचीत और एक व्यक्ति
में बहाउल्लाह और मानवजाति की सेवा करने और उसमें ऐसा करने की क्षमता
का निर्माण करने की इच्छा उत्पन्न करने के उद्देश्य के साथ
शुरू होती है। यह अटूट क्रम अंततः ‘‘विकास के कार्यक्रम’’ के लिए होता है। यह
एक सुन्दर और प्रगाढ़ मार्ग है जो एक सार्थक बातचीत के साथ शुरू
होता है। उन्होंने कहा कि हम सभी विश्व न्याय मन्दिर द्वारा दिखाये
गये सेवा के पथ पर चलने का प्रयास कर रहे हैं।
श्री बी. अफशिन ने अपने वक्तव्य में विशेष रूप से इस बात का
उल्लेख किया कि ‘‘जैसाकि हमारे परमप्रिय मास्टर ने आशा व्यक्त की है कि अनुयायियों
के हृदयों में एक-दूसरे के लिए प्रेम का अतिप्रवाह हो बीच में
कोई मतभेद न हो, सब एक परिवार की भांति हों।’’
राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभा के सदस्य श्री पी. के. प्रेमराजन ने
इस अवसर पर अपने उद्बोधन में ‘‘व्यक्तिगत पहल’’ के बारे में बोलते हुए
समाज में परिवर्तन के लिए मूलगतिविधियों में शामिल व्यक्ति के
महत्व के बारे में बताया। समारोह के अंतिम दिन उन्होंने पावर प्वाइंट के
माध्यम से ‘‘जीवनरक्त कोष/हुकूकुल्लाह’’ के बारे में मित्रों को जागरूक किया। श्री
एम. सरवानन द्वारा प्रश्नोत्तरी का कार्यक्रम किया गया, जिसमें सभी मित्रों ने उत्साहपूर्ण भाग
लिया। श्रीमती इज्ज़त अंसारी ने ‘‘महिला-प्रथम शिक्षका’’
एक महत्वपूर्ण
भूमिका जो एक माँ निभाती है, को खूबसूरती से वर्णित किया। जब एक बच्चा दुनिया
में आता है तो माँ को ध्यान रखना चाहिए कि घर के अन्दर ऐसा
माहौल हो जो बच्चे की आध्यात्मिक और भौतिक प्रगति के लिए
अनुकूल हो। उसके उपरान्त श्रीमती इज्ज़त अंसारी और सुश्री के. एस.
शोभा द्वारा एक कार्यशाला आयोजित की गई, जो बच्चों/किशोरों के हित से
सम्बन्धित विश्व न्याय मन्दिर के रिज़वान 2000 के संदेश पर आधारित
थी। सहायक मण्डल सदस्य श्री पी. के. बाबू और श्री उनीज़
एमसी. द्वारा रूही पुस्तक-8 पर आधारित ‘‘बहाउल्लाह की संविदा’’
पर अपनी प्रस्तुति
दी गई। परिषद के कोषाध्यक्ष श्री सीपी. विनोद ने शीतकालीन स्कूल की
वित्तीय रिपोर्ट प्रस्तुत की और घोषणा की कि यह पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर
है। राज्य बहाई परिषद यह आशा करती है कि मित्रगण शीतकालीन
स्कूल से प्रेरणा और ऊर्जा प्राप्त करके अपने क्लस्टरों में
वापस लौटेंगे।
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