Wednesday, April 27, 2011

Dignitaries launch silver jubilee year for Lotus Temple

Former President of India Dr. A.P.J. Kalam addressing a gathering marking the inauguration of the 25th anniversary year of the Baha'i House of Worship in New Delhi. Dr. Kalam described the House of Worship as "a temple of peace, a temple of happiness and a temple of spirituality." 
NEW DELHI — Prominent political figures praised the impact made by the Baha'i House of Worship on Indian society, as the building's 25th anniversary year got underway in New Delhi.

More than 400 guests – including government officials, along with representatives of the diplomatic community and non-governmental organizations – gathered at the House of Worship for the festive inauguration of its silver jubilee year.

"When I am in this beautiful Baha'i temple environment," the former President of India Dr. A.P.J. Kalam told the gathering, "I see everywhere around me harmony in thinking, harmony in action and harmony in every way of life."

Describing the House of Worship as "a temple of peace, a temple of happiness and a temple of spirituality," Dr. Kalam extended his best wishes to the Baha'i community in its efforts to eradicate prejudice, disharmony and conflicts in society.

"One of the greatest missions of this temple of harmony is to transmit the message to give and give to the entire humanity," he said.

India's current President, Shrimati Pratibha Devisingh Patil sent her "warm greetings and felicitations," in a special message to the celebration, held on 20 March.

A traditional Indian-themed dance performance, titled Rainbow, led by renowned dancer and choreographer Swagatha Pillai, was also part of the evening's programme.

After the speeches and performances at the Temple's Information Center, guests attended a special service in the House of Worship, which included prayers from the children's choir of the Little Angels School of Gwalior.

An "iconic structure"

The Baha'i House of Worship, popularly referred to as the "Lotus Temple", is one of the most visited monuments in the world. Completed in 1986, it has received an average of 4.3 million visitors every year – from all nations, religions and walks of life.

Kumari Selja, Indian Minister of Culture, described the House of Worship as "certainly one of the many facets that make India incredible."

"The Temple itself stands as an iconic structure reflecting the true essence and cultural ethos of our great nation which has welcomed people of all Faiths to its shores and sheltered them," Ms. Selja wrote in a message for the occasion.

"Like the lotus which blossoms pure above muddied waters, we too can rise above differences of caste, creed, class, community, nationality and gender and put forth our best efforts towards making the world a beautiful place," she wrote.

Communal harmony

The promotion of communal harmony as a prime focus of the Baha'i community was highlighted by Nazneen Rowhani, Secretary of the National Spiritual Assembly of the Baha'is of India.

"While the edifice of the Temple is dedicated to the worship of God," Ms. Rowhani said, "it should not become divorced from the social, humanitarian, educational and scientific pursuits which shall in the fullness of time afford relief and sustenance to the poor, solace to the bereaved, and education to those who suffer from lack of it."

India's Minister for Tourism, Subodh Kant Sahai, highlighted Baha'i social and educational activities in his message to the gathering. "As its contribution to the advancement of Indian society," he wrote, "the Baha'i House of Worship serves as a venue for non-denominational activities such as the spiritual and moral education for children and young people, as well as gatherings where adults systematically study spiritual principles and their application in daily life."

The House of Worship symbolizes India, wrote Mr. Sahai, "combining eternal and universal values with a forward looking approach."

Further events are planned throughout the year in every state of India to commemorate the 25th anniversary of the House of Worship.

Tuesday, April 26, 2011

ईरान में बहाई नेता बन्दियों को 20 साल की सजा बहाल होने पर भारत के बहाई खोप के साये में

सुरेंदर अग्निहोत्री,,
आ.एन.वी.सी,,
लखनऊ, ,
भारत एवं सम्पूर्ण विश्व का बहाई समुदाय ईरान में बन्दी सात बहाई नेताओं के 20 साल की पूर्व सजा बहाल होने पर स्तब्ध है। अभी छ: महीने पहले ही ईरान की अपील कोर्ट द्वारा यह सजा घटाकर 10 वर्ष किए जाने की सूचना इन बन्दी नेताओं को दी गई थी। संयुक्त राष्ट्र संघ में अन्तर्राष्ट्रीय बहाई समुदाय की प्रमुख प्रतिनिधि सुश्री बानी दुग्गल ने बताया कि यह निश्चित है कि जेल के अधिकारियों ने इन सात लोगों को सूचित किया है कि अपील कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया गया है। हालांकि उन्हें अभी तक इसकी कोई लिखित सूचना नहीं मिली है, इसलिए हम यह नहीं बता सकते कि किस आधार पर उनकी कम की गई सजा रद्द की गई, शायद ईरान के महाधिवक्ता ने अपील कोर्ट के फैसले को शरीयत के विरुद्ध पाते हुए इसके खिलाफ अपील की थी।
डा. भारती गांधी, प्रमुख बहाई धर्मावलम्बी, लखनऊ ने आज बताया कि पिछले महीने ही ईरानी दूतावास ने ब्रुसेल्स में दस्तावेज पेश कर पूरी दुनिया को सूचित किया था कि जासूसी, राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु खतरा एवं अवैध धर्म स्थापित करने के झूठे आरोपों के साबित न होेने पर इन सातों बहाई नेता बन्दियों की सजा 20 वर्ष से घटाकर 10 वर्ष कर दी गई है। उन्होंने कहा कि इस 10 वर्ष की सजा को पुन: 20 वर्ष कर देने में ईरानी सरकार की गलत मंशा, धोखा एवं धूर्ततापूर्ण कार्यवाही जगजाहिर है जो उनके द्वारा इस केस में दिखाई जा रही है। उनकी सजा के प्रारिम्भक काल में भी उन्हें 30 महीनों के लिए बन्दी बनाकर रखा गया था जबकि उन्हें या उनके वकील को आरोप पत्र भी नहीं दिया गया।
भारत के करीब 2 करोड़ बहाइयों ने इन सात ईरानी बहाई नेताओं की 2008 में गिरफ्तारी पर कड़ा विरोध जताया तथा भारत के विभिन्न प्रदेशों में रहने वाले बहाई न्यायिक पदाधिकारियों, धार्मिक नेताओं, शिक्षाविदों, फिल्म जगत, स्वयंसेवी संस्थाओं इत्यादि ने इसे मानवाधिकार का उल्लंघन बताया। डा. भारती गांधी ने कहा कि हम सभी बहाई समुदाय के लोग सम्पूर्ण भारतवासियों एवं विशेषकर भारत सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह ईरानी सरकार पर दबाव डालें कि वह इन निर्दोष बहाई बन्दी नेताओं की सुरक्षित रिहाई सुनिश्चित करायें क्योंकि उनके इस कृत्य पर पूरी दुनिया की नज़र है।

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Monday, April 4, 2011

केरल और गुजरात में हुए विंटर स्कूलों की झलक

करेल में आयोजित 32वें विटंर स्कूल के प्रतिभागी

केरल में 23 से 26 जनवरी 2011 तक 32वें वार्षिक बहाई विंटर स्कूल का आयोजन किया गया। राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभा के तीन पदाधिकारियों-उपाध्यक्ष श्रीमती ज़ीना सोराबजी, सचिव सुश्री नाज़नीन रौहानी और कोषाध्यक्ष श्री पी. के. प्रेमराजन की उपस्थिति के कारण यह विंटर स्कूल और भी महत्वपूर्ण बन गया। इनके अलावा राष्ट्रीय सांख्यिकी अधिकारी श्री टी. प्रभाकरण, भूतपूर्व सलाहकार श्री बी. अफशिन, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से आये मित्रों के अलावा सभी 6 सहायक मण्डल सदस्य भी इस विंटर स्कूल में उपस्थित हुए। विंटर स्कूल का आरम्भ यूनिटी फीस्ट से हुआ जिसमें भजन और भक्तिपरक नृत्य प्रस्तुत किये गये। श्री अफशिन द्वारा दीप प्रज्ज्वलित किया गया साथ ही उन्होंने 'बहाई होने के नाते हमारे जीवन का उद्देश्य' पर अपना वक्तव्य दिया।

विश्व न्याय मन्दिर के रिज़वान 2010 के संदेश पर सहायक मण्डल सदस्यों के सहयोग से एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। मित्रों को छोटे-छोटे समूहों में विभक्त कर उन्हें संदेश के निश्चित भाग का अध्ययन करने और उस पर अपनी प्राप्त समझ से प्रस्तुति तैयार करने को कहा गया। प्रस्तुति से यह स्पष्ट हो गया कि सभी समूहों द्वारा बहुत गहनता से अध्ययन किया गया। कुछ समूहों ने विषय पर आधारित लघुनाटिका और गीत प्रस्तुत किये। श्री टी. प्रभाकरण ने पावर प्वायंट की मदद से ''अब्दुल-बहा का जीवन और उद्देश्य'' के विषय में विस्तार से बताया जिसको देखने के उपरान्त मित्रों को परमप्रिय मास्टर के स्थान के बारे में वास्तविक ज्ञान प्राप्त हुआ। श्रीमती ज़ीना सोराबजी ने पावर प्वायंट प्रस्तुति द्वारा विवाह पर बहाई सिध्दांत और राजनीति में भागीदारी न करना'' जैसे विषयों पर उपस्थित मित्रों को बताया। उन्होंने अनुयायियों के अनेक प्रश्नों के उत्तार दिये।

एक अन्य सत्र में उन्होंने हुकूकुल्लाह (ईश्वर का अधिकार) के विषय में भी बताया। सुश्री नाज़नीन रौहानी ने 'किशोर आध्यात्मिक सशक्तिकरण कार्यक्रम और बच्चों की बहाई कक्षा' की आवश्यकता और उन्हें दृढ़ करने के उद्देश्य पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया और ''सेवा का आध्यात्मिक पहलू'' विषय पर बहुत गहनता से अपनी प्रस्तुति दी। श्री पी. के. प्रेमराजन ने बहाई कोष के बारे में बताया तथा एक अन्य सत्र में सर्वोच्च संस्था के 28 दिसम्बर 2010 के संदेश के विशेष संदर्भ के साथ स्थानीय आध्यात्मिक सभाओं के विकास की अवधारणा और उसके स्थान के विषय में बताया। डॉ. के. एम. रामानन्दन ने पावर प्वाइंट के माध्यम से भारत में जनगणना की प्रणाली को समझाया और बताया कि यह बहुत जरूरी है और हमें यह निश्चित करना चाहिए कि धर्म के कॉलम में बहाई ही लिखा जाये। यह विंटर स्कूल हर मामले में पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर था।

प्रत्येक समुदायसमूह में अनुयायियों ने परिषद के लक्ष्य के अनुसार धनराशि एकत्रित की थी। समापन समारोह के दौरान पड़ोसी राज्यों से आये कुछ मित्रों ने विंटर स्कूल पर अपने अनुभव एक-दूसरे के साथ बांटे। वे सभी यह देखकर खुश थे कि विंटर स्कूल का आयोजन बहुत ही व्यवस्थित ढंग से किया गया था और उन्हें भी बहुत कुछ सीखने को मिले। विंटर स्कूल में शामिल सभी मित्रगण अगली पाँच वर्षीय योजना के लक्ष्य को पूरा करने के लिए बहुत सी यादें, आध्यात्मिक दृष्टिकोण, खुशियाँ और उत्साह लेकर अपने-अपने घरों को वापस लौटे। सगुजरात में बिलिमोरा में 5 से 7 जनवरी 2011 को विंटर स्कूल का आयोजन किया गया, जिसमें 175 मित्रों ने भाग लिया। इस विंटर स्कूल में युवाओं को सार्वजनिक समारोह में बात करने के लिए प्रोत्साहित किया गया और बच्चों के लिए एक विशेष कार्यक्रम रखा गया। एक ओर जहां युवाओं ने अपनी बातों द्वारा अपनी प्रतिभा को साबित किया वहीं दूसरी ओर बच्चों ने विशेष कार्यक्रम का आनन्द लिया।

श्री जितेन्द्र बागुल ने ''सेवा और मूल गतिविधियों'' के विषय में बताते हुए कहा कि मूल गति- विधियाँ मानवजाति की सेवा कर रही हैं वे एक बहाई होने की विशेषता बता रही हैं। सेवा को प्रभावी और सफल बनाने के लिए प्रेम और समर्पण अतिआवश्यक है। श्रीमती ज़ीना सोराबजी ने बहाई उपासना मन्दिर को आत्मनिर्भर बनाने पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि बहाई उपासना मंदिर के लिए जमीन खरीदने और उसके निर्माण कार्य के दौरान अनेक चमत्कारिक घटनायें हुईं, जिनको उन्होंने स्वयं देखा था। मन्दिर की भूमि खरीदने के लिए कई दशकों तक कुछ मित्रों ने समर्पण और धैर्य के साथ कड़ी मेहनत की। इस समय मन्दिर की देखरेख के लिए प्रतिवर्ष दो करोड़ रुपये व्यय होते हैं, जिसका केवल 30 लाख रुपये भारत के मित्रों से योगदान प्राप्त होता है शेष राशि विश्व न्याय मन्दिर द्वारा भेजी जाती है

 अब राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभा ने यह वचन दिया है कि संपूर्ण व्यय भारत के मित्रों द्वारा वहन किया जायेगा। श्रीमती सोराबजी के वक्तव्य के बाद राज्य परिषद के कोषाध्यक्ष ने उपस्थित मित्रों से मन्दिर कोष के लिए 5 लाख 94 हजार रुपये एकत्रित करने का आह्वान किया। उपस्थित मित्रों ने ''बहाई चुनाव के सिध्दांत'' पर विश्व न्याय मन्दिर के 25 मार्च 2007 के संदेश का छोटे-छोटे समूहों में अध्ययन किया। उन्होंने जाना कि बहाई चुनाव में प्रतिभागी होना प्रत्येक वयस्क बहाई का आध्यात्मिक दायित्व है। उन्हें ऐसे व्यक्ति को अपना मतदान देना चाहिए जो सेवा कार्यों में सक्रिय हो और पूर्ण रूप से अनुभवी, योग्य, निष्ठावान, प्रशिक्षित और समर्पित हो।

हुकूकुल्लाह के उपन्यासी श्री नन्द खेमानी ने हुकूकुल्लाह पर अपने वक्तव्य में कहा कि हुकूकुल्लाह एक दायित्व है और राशि का भुगतान बहाउल्लाह द्वारा निर्धारित किया गया है। जबकि अन्य मामलों में योगदान देना हमारे स्वयं पर निर्भर है कि हम कितना दान देंगे। हमारी बचत में 81 प्रतिशत हमारे लिए है और 19 प्रतिशत हम उसे वापस कर देते हैं वह 19 प्रतिशत हुकूकुल्लाह है। श्री चेतन पारिख ने ''पवित्र और नैतिक जीवन'' के विषय में बताते हुए कहा कि हमारा जीवन इस प्रकार का होना चाहिए कि हमारे शब्दों और व्यवहार को देखकर पता लगे की यह बहाई है। हमारे जीवन में सत्यवादिता, मित्रता, एक शुध्द हृदय और प्रार्थना यह चार गुण अवश्य होने चाहिए। विंटर स्कूल के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये गये, जिसमें बच्चों द्वारा गीत, बहाई प्रार्थनाओं पर आधारित नृत्य, सांस्कृतिक नृत्य और लघु नाटिका आदि प्रस्तुत किये गये।

Meeting With Mrs. Sheila Dikshit, Chief Minister New Delhi

A delegation of three members of the National Spiritual Assembly met the Hon'ble Chief Minister.

The representatives of the National Assembly thanked the Chief Minister for the wonderful float of the Delhi Government at the Republic Day Parade on 26 January 2011 and expressed their joy that her Government had included the Baha'i Temple and high-lighted its message of communal harmony and unity in diversity; this was the silver jubilee year of the House of Worship and the entire Baha'i world is thrilled at the unexpected recognition the Temple had obtained - truly a divine providence.



When the album 'Dawning Place of the Remembrance of God' was gifted to her, she conveyed her appreciation and said that she had issued orders for the proper maintenance and upkeep of the surrounding areas of the Temple and looked forward to visiting the Temple during the 25th anniversary celebrations. She was also presented with a copy of the album on the Baha'i Edifices in the Holy Land. As she placed the book on her table, she said that she would look through it later on.

External Affairs Capacity Building Seminar in Bhubaneswar

Orissa witnessed a beautiful seminar on 11th, 12th and 13th of February for selected friends to build their capacity to interact with society in external affairs works.

On the invitation of the External Affairs Department of the National Spiritual Assembly 39 friends from different part of Orissa who are involved in the Five Year Plan and also engaged in media, web sites, and different NGO's participated.





The opening session started with few beautiful prayers by some of the friends. Chairperson Mr. Surya Prakash well come Executive Director of the Department of the External Affairs, Mrs.Farida Vahedi and the co- facilitator Miss.Nilaskhi for the seminar from National office in presence of the all participates. He handed over the programme to Mrs.Vahedi for further facilitation. The participants discussed selected paragraphs of the Ridvan 2010 message from the Supreme Body and consulted on social action, social discourses and the two essential parts of the growth process, expansion and consolidation, friends learned how the twin process leads towards the transformation of the society.

On the second day of the seminar they studied the concept papers, "Advancing the Equality between Man and Women" in which the friends presented their deep opinions on gender equality. All of them discussed intensely on today's male preferred society and the second concept paper was on "Science, Religion and Development".

The third day started with beautiful devotional. The participants had a review session with the help of the Auxiliary Board members. A powerpoint presentation on development and rebuilding process of the society was viewed. Other topics discussed were Internet and how to promote the social discourses through social networking sites like Face Book, Twitter, blogs etc. The participants learnt about the Baha'i websites and how it can bring awareness in the life of the current society.

Baha'i Marriage in Gwalior

Yashpal Narwariya and Faranak Dargahi married on the 30th November 2010. The ceremony was held at Gwalior city and the couple were wedded by the LSA of Gwalior.

Baha'i Marriage at the World Centre

Ms Swathi Baskaran and Mr. Dave Twaddell entered into wedlock on 28th January 2011 as per Baha'i marriage laws at the Baha'i World Centre, Haifa.

Baha'i Marriage


Mr. Rahul Khemani and Ms Rishma Singh, from Maharashtra entered into wedlock on 20th February 2011 as per Baha'i marriage laws in Thailand. Around friends participated in the ceremony.

Baha'i Family Conference held in Saidabad, Hyderabad

On 14 February 2011, the LSA of Hyderabad organized a Baha'i Family Conference at the Baha'i Ashram in Saidabad, Hyderabad.

The event was attended by around 45 friends. Members of the Baha'i community were present, along with friends and families. A few students from the wider community who attend a Baha'i inspired school also came to the family conference.

Talks on core activities and other topics were presented. A community feast was arranged during lunch time which was followed by cricket and music. Needless to say, this conference was a grand success.

Unity in Diversity


The Delhi tableau, seen during the 62nd Republic Day Parade at New Delhi, highlighted the harmonious existence of the city's four major religious communities. With its message of "Cultural and Religious Harmony", Delhi's tableau made a comeback at the Republic Day Parade after a three-year absence. The Baha'i Temple with its message of respect for all religions stood at the forefront, while the sides represented the harmonious existence of the city's four major religious communities. Fittingly, the tableau depicting the House of Worship won first prize!

Silver Jubilee for the Mona School

This academic year the Mona School celebrated its silver jubilee. The Mona School imparts education to more than 800 children of Satara city and its suburbs. This Baha'i inspired school is known for its high morals and discipline. The silver jubilee celebration was attended by thousands of parents, well wishers, and alumni of the school. It was a milestone in the path of the school's progress. On this occasion a souvenir was released which contained glimpses of school activities and reviews from the students, parents, school officials, and city dignitaries.

In 2010 all fifty students who appeared for the STD Xth State board exam secured distinction and high distinction ranks. This success broke all past records and achieved position on the State Board merit list. For the last 12 years, 100% of the students have passed this exam. The news of this achievement was carried by all the local newspapers. Eleven students of Mona School were awarded government scholarship and were on the Maharashtra state ranking list. Two students received the National Scholarship award in the National Talent Search Exam. One student won the National TV Cultural Programme. Two students achieved state level championship in the field of sports. In its recent inspection by the Education Department, the Mona School has been awarded 'Ideal School' distinction and has received first prize for the Most Clean School.

The school emphasizes its moral and peace education curriculum for its primary section and junior youth spiritual empowerment programme for its secondary section, as well as its Sunday moral classes. This activity is liked by the students and appreciated by the parents. The Mona School is developing a new project at the outskirts of Satara for strengthening environmental awareness, moral capabilities, and community service in children. The new project will start during the next academic year and will be a boon to the children andjunior youth of our school and nearby villages and the city.

The school has developed a very interactive and informative website( www.monaschool.com) to cater to the needs of students, parents, and alumni of the school.

Representatives of the Baha'i community meet with former President of India, Dr. A. P. J. Abdul Kalam

Friends from the Baha'i community recently met with former President of India, Dr A.P.J Abdul Kalam on 11 January 2011. Dr. Kalam is familiar with the Faith, being the first sitting President of India to have visited the Temple in 2003.

The delegation consisted of Ms. Bani Dugal, who is the Principal Representative of the Baha H International Community to the United Nations, the Secretary of the National Assembly Ms. Nazneen Rowhani, and members of the task force that is coordinating the celebrations of the 25th anniversary of the Temple, Mrs NalinaJiwnani, andDrArjun Rastogi.

Dr. Kalam expressed his thoughts on the great need for prejudices to be overcome and for women to be empowered. He spoke about how differences need to be embraced and about the great need for increasing tolerance in both adults and children. He especially spoke about the need to educate adults and parents, more so than children, as it is often the home environment that shapes the thoughts children.

हिन्दुस्तान में भी फैल रहा है बहाई धर्म

अरब के देशों में परमात्मा को जानने और परमात्मा ही हो जाने वाले कुछ लोग हुये हैं। मगर उन्हें वहाँ की माटी ने स्वीकार नहीं किया। सुकरात ने ऐसा कुछ बोला तो उसे जहर दे दिया गया। मनसूर ने कहा- अनाहल हक अर्थात मैं ही खूदा हूं। तो लोगों ने मनसूर को सूली पर चढ़ा दिया। इस देश में परमात्मा को जानने और उस पर पहंुचने वाले बहुत लोग हुये। यहाँ ऐसा कुछ नहीं हुआ जो पश्चिम के देशों में हुआ हमने सभी को उनकी विशालता के अनुसार ही ग्रहण किया। यही कारण है कि यहाँ हूण, यमन, यहूदी, पारसी, मुसलमान, ईसाई और न जाने कौन-कौन आये और यहां समा गये। बहुत पुरानी बात नहीं है कुछ सौ साल पहले की बात है उदयपुर महाराणा की महारानी मीरा अपना राजमहल छोडकर वृन्दावन जा बसी। वह वृन्दावन की गलियों में नाच-नाच कर अपनी लय में खो जाती थी। उनकी सास ने अपने राजमहल की इज्जत को इस तरह मिटते हुये देख जहर भेज दिया। और उनसे कहा कि यह श्रीकृष्ण का प्रसाद है। मीरा ने श्रीकृष्ण का प्रसाद सुनकर उसको अपने गले में उतार लिया। पर मरी नहीं। सुकरात और मनसूर मर सकते हैं मगर मीरा अपने भक्ति के प्रताप से जिंदा रही। आज उसी मीरा की भारत भूमि पर इजराइल में पैदा हुआ मत इस देश में अपनी पैठ बनाता जा रहा है। अभी इस दुनिया में पचपन लाख इस धर्म के अनुयायी हैं जबकि भारत में लगभग बीस लाख। हमारे देश की विरासत कितनी प्रबल थी यह आज उस देश में बहाई मत का फैलाव बता रहा है। हम अपनी जडों से टूटकर दूर बिखर चुके हैं।

भारतीय उपमहाद्वीप का दिल्ली स्थित बहाई मन्दिर दुनिया के सात महत्वपूर्ण मन्दिरों में से एक है। इससे पूर्व के मन्दिर विलमेट, अमेरिका, कम्पाला, युगांडा, सिडनी, आस्ट्रेलिया, फ्रेंक फर्ट, जर्मनी, पनामा, एपिया और पश्चिम समोहा में स्थित है। कालका जी नई दिल्ली स्थित बहाई मताम्बलियों के अनुसार सात महत्वपूर्ण मन्दिर हैं। अब आंठवां पडाव वह चिली में बनाने वाले हैं। बनावट की दृष्टि से यह सभी मन्दिर अपने आप में अनूठे हैं। इन मन्दिरों में मनुष्य और ईश्वर की बीच की खाई को पेन से पाटने का पाठ सिखाया जाता है। धर्म, जातियों और विभिन्न नस्लों के नहीं अनेक राष्ट्रों के लोग यहां आमन्त्रित किये जाते हैं। नई दिल्ली के इस मन्दिर में आधे खिले कमल का रूप है। इसलिये इसे लोटस मन्दिर भी कहा जाता है। यह अत्यन्त सुन्दर फूल पवि़त्रता का प्रतीक माना जाता है। इस फूल को हमारे देश में फैले हुये मतावलम्बियों ने समान रूप से महत्व दिया है। इस मन्दिर के चारों ओर नौ तालाब बने हुये हैं। जिससे भवन की सुन्दरता और बढ़ जाती है। इन तालाबों में भरा हुआ निर्मल जल सौन्दर्य के साथ-साथ इस भवन के तापमान को भी नियंत्रित करता है। इस मन्दिर के सामने एक प्रशासनिक भवन है जिसमें पुस्तकालय, सभा भवन और श्रृव्य दृश्य का हाल है। बाहई मन्दिर के नौ किनारे यहाँ की व्यापकता, विभिन्नता ओर एकता का प्रतीक माने जाते है।

बहाई मन्दिर में उनके पवित्र ग्रन्थ का पाठ और गान किया जाता है। शेष समय शान्ति पूर्वक प्रार्थना और ध्यान के लिये बैठा जाता है। इस हाल नुमा मन्दिर में कोई भाषण या प्रवचन नहीं होता है। यहाँ धार्मिक अनुष्ठान भी नहीं होते हैं। भविष्य में यहां इस मत के अनुसार स्कूल, पुस्तकालय, अस्पताल, अनाथालय, निराश्रित और वृद्ध लोगों के रहने के स्थान बनने वाले हैं। इस मन्दिर की जमीन सन् 1953 में खरीद ली गयी थी, लेकिन इसका निर्माण कार्य 1980 में आरम्भ हुआ। 21 अप्रैल को आरम्भ होने के बाद इस मन्दिर का उद्घाटन सन् 1986 में हुआ था। इस प्रकार इस मन्दिर को बनने में लगभग साढे़ छः वर्ष लगे। इस मन्दिर की कमल पंखडिया सफेद पत्थर की बनी हुयी हैं जिनके ऊपर ग्रीक संगमरमर लगी हुयी है। इस मन्दिर के लिये खरीदी गयी जमीन 2606 एकड मन्दिर की ऊंचाई 34-27 मीटर है। इस मन्दिर का व्यास 70 मीटर है। भीतर की ओर से गुम्बद के ऊपरी शिखर पर तीन लकीरों जैसी कुछ भाषा लिखी है। जिसके विषय में यह लोग सविस्तार बताते हैं। यह परम महान नाम है इससे तीन साम्राज्यों का नाम पता चलता है। एक ईश्वरीय साम्राज्य फिर ईश्वरीय अवतार और अन्त में मनुष्य जाति इन तीनों को जोड़ने वाली एक खडी लकीर है जो धर्म के द्वारा ईश्वर तक पहुंचाने का माध्यम माना गया है। इन लकीरों के ईद-गिर्द दो सितारे चमकते हैं यह दोनों सितारे इन लोगों के मत के अनुसार बाब और बहाउल्लाह के प्रतीक हैं। दरअसल इस मत को पैदा करने वाला बाब फारसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है द्वार। फारस के क्षेत्र में तेइस मई 1844 को बाब ने घोषणा की कि वह नई अध्यात्मिक विभूति के आगमन की घोषणा करने वाले हैं। उनका जन्म 1819 में हुआ था और उनको 1850 में इजराइल के अक्का नामक शहर में शहीद कर दिया गया। उसके बाद लगभग 20 हजार लोगों को अमानवीय यातना देकर मार डाला गया। लेकिन उनका मत मरा नहीं जिंदा रहा जिसका प्रचार प्रसार बहाउल्लाह ने किया।

बहाई मत के अनुयायी अपने मत को विश्व धर्म की संज्ञा देते हैं। यह लोग सभी को अपने में समा लेना चाहते हैं। अपने दृष्टिकोण में व्यापक, अपनी विधि में वैज्ञानिक और सिंद्धातों में मानववादी हैं। इनके आचार-विचार मनुष्यों के मानस पटल पर गतिशील प्रभाव छोडते हैं। यह लोग ईश्वर की एकता, उनके विभिन्न अवतारों की स्वीकृति और समस्त मानव जाति की एकता और अखंडता को मानते हैं। बाब के बाद बहाउल्लाह ने इस मत का प्रचार प्रसार किया। उनके नाम का अर्थ है ईश्वर के नाम का प्रताप। उनका जन्म 1817 में हुआ था। 1853 में जब वह कारागार में थे तो उन्हें अनुभव हुआ कि बाबा द्वारा घोषित प्रतिज्ञाबद्ध विभूति वह स्वयं हैं। 1863 में वह देश निकाले की सजा भुगतने के लिये बगदाद में थे वह 1892 तक इस दुनिया में रहे। उन्होंने अपने जीवनकाल में बाब के मत का प्रचार-प्रसार फारस, आटोमन, टर्की, भारत, बर्मा और सूडान में किया था। उन्होंने अपने 40 वर्ष के कारवास में हजारों लेख लिखे। जिनके आधार पर इस मत का ढांचा तैयार किया गया। उन्होंने अपनी वसीयत में अपने बडे़ लड़के अब्दुल बहा को इस मत के प्रचार-प्रसार के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और यूरोप में भेजा। अब्दुल बहा 1921 की 28 नवम्बर को हयाफ नामक स्थान पर इस दुनिया को छोडकर चले गये। इस मत के अनुयायी दुनिया में जैसे बढ़ रहे थे वैसे ही विवाद भी घर कर चुके थे। उन्होंने अपने नाती शोंगी एफेन्दी को इस मत का संरक्षक नियुक्त कर इस मत का बिखराव रोक लिया। उन्होंने इस मत के प्रचार-प्रसार के लिये 36 वर्षाे तक कठिन परिश्रम किया। उन्होंने विश्व न्यायाधिकरण की स्थापना मानव समाज में न्याय की महिमा, सेवा की भावना, राष्ट्र और लोगों की सुरक्षा की लिये धर्म की प्रतिष्ठा, आर्थिक समस्याओं का आध्यात्मिक समाधान और अपनी देश की सरकार के प्रति आज्ञाकारिता का भाव रखने की हिदायत दी। बहाउल्ला भी मानते थे कि सम्पूर्ण पृथ्वी एक देश और समस्त नागरिक इसके नागरिक हैं।



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