Friday, March 2, 2018

बहाई नववर्ष और इतिहास

दुनिया मे लगभग 35 बार लोग अपनी-अपनी जगह विश्वासो, कारणों और तरीको से नया साल मनाते है। परन्तु उनमे से कुछ जो हम जानते है।
जनवरी मे मनाया जाने वाला ईसाई नववर्ष
चैत्र से शुरू होने वाला हिन्दू नववर्ष
मोहर्रम से प्रारम्भ होने वाला मुस्लिम नववर्ष प्रमुख है।
इसके अलावा सिर्फ नानक साही कैलेण्डर बुद्ध पूर्णिमा से मानकर नया साल मनाते है। किसी ऐतिहासिक व महान घटना को रेखांकित करने के लिए नया दिन, नई तारीख, नया साल और नया कैलेण्डर प्रारम्भ होता है। जैसे-ईसा का जन्म दिन, विक्रमादित्य का सिंहासन पर बैठना और हजरत मुहम्मद का मक्का से मदीना हजरत करना । इन्हीं घटनाओं को लेकर क्रमशः ग्रेगोरियन, विक्रम, और हिजरी कैलेण्डर प्रारम्भ हुए इनकी खगोलीय गणना चाँद और सुरज को आधार मानकर की जाती है । परन्तु यह निर्वियाद सत्य है । पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा 365 दिन और लगभग 6 घण्टे मे पुरी करती है।
बहाई धर्म के अग्रदुत दिव्यात्मा बाब ने ईरान के पारम्परिक रूप से मनाए जा रहे नववर्ष (नवरूज) को ही नया साल घोषित किये और कहे कि यही नये कैलेण्डर के शुरूआत और मानव जाति के परिपक्वता का प्रारम्भिक बिन्दू है ।
बहाउल्लाह ने इस आदेश को प्रमाणित और स्थापित किया इस तरह इस वर्ष 21 मार्च 2018 में जब नवरूज मनाया जायेगा तो 175वां बहाई वर्ष प्रारम्भ हो जायेगा ।
बहाई धर्म मे कुल 9 त्यौहार और वार्षिकी होते है, जिसमे नवरूज मात्र एक ऐसा पर्व है। जो दिव्यात्मा बाब और बहाउल्लाह के जीवन तथा उद्घोषणा से सम्बन्धित नही है इस दिन सारी दुनिया के बहाई जो ईसाई, मुस्लिम, बौद्ध, हिन्दू, सिक्ख, यहुदी और पारसी सहित विभिन्न पृष्ठ भूमि से आते है , सब संयुक्त रूप से सामान आस्था और विश्वास को अपनाते हुए "उन्नीस दिवसीय उपवास" की समाप्ति के बाद नवरूज मनाते है।
लगभग 5,000 साल पहले शहंशाह जमशेद ने मौसम के महत्व को समझ कर कङकङाती ठंड के बाद जब बसंत का आगमन होता है। तो फसलो, फूलो और पशुधन मे बढ़ोत्तरी के कारण नवरूज को एक उत्सव के रूप में मनाया जाना प्रारम्भ किया ।इसीलिए इसे जमशेदी नवरूज भी कहते है ।
ईसा से लगभग 1725 वर्ष पूर्व ईश्वरीय अवतार जोरास्त्र जो स्वयं एक खगोल शास्त्री थे, उन्होंने नवरूज को बसंत समाप्त से सम्बंधित किया ।
जब सुर्य भूमध्य रेखा को पार कर जिस क्षण मेष राशि मे प्रवेश करता है वही से साल का नया दिन प्रारम्भ होता है ।
बहाई धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह के ज्येष्ठ पुत्र अब्दुल बहा ने बसंत सम्पात को ईश्वरीय अवतारो का प्रतीक बताया।
यह दुनिया का एकमात्र ऐसा धर्म निरपेक्ष नया साल है । जिसे सभी धर्मों के लोग मानते है ईरान में तो पारसी, बहाई, मुस्लिम, यहुदी, ईसाई कोई भी हो इसे वह धूमधाम से समारोह पूर्वक मनाता ही है इसके आलावा सूफी, मुस्लिम, ईसमाईली, बलूच और काश्मीरी हिन्दू भी नवरूज मनाते है ।
संयुक्त राष्ट्र संघ की जनरल एसेम्बली ने 2010 में नवरूज को अंतर्राष्ट्रिय दिवस के रूप में मान्यता देते हुए इस ईरानी मुल के बसंत त्यौहार को लगभग 3,000 साल से अधिक समय से मनाया जाता हुआ बताया है । और यूनेस्को ने अक्टूबर 2009 को नवरूज मानवता के लिए संरक्षित सांस्कृतिक धरोहर की सूची मे सामिल किया है।
21 मार्च को दिन और रात लगभग बराबर होते है , विज्ञान खगोल शास्त्र के अनुसार भी सुर्य के भूमध्य रेखा को पार कर मेष राशि में प्रवेश को ही समय तारीख और दिन की गणना हेतू सर्वाधिक उपयुक्त माना जाता है ।
*ईश्वर ने चाहा तो* आने वाले समय में नवरूज ही सारी दुनिया का एकमात्र अधिकारिक नववर्ष होगा इसी आशा ,विश्वास और भावना के साथ समर्पित ।

इकबाल चन्द, रामपुर, उत्तर प्रदेश