Monday, July 22, 2013

पद्म भूषण प्रोफेसर सत्यव्रत शास्त्री से मिलने का सुनहरा अवसर

शायद वर्तमान में, भारत में संस्कृत और भारतीय सभ्यता के सर्वश्रेष्ठ विद्वान पद्म भूषण प्रोफेसर सत्यव्रत शास्त्री से मिलने का सुनहरा अवसर राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभा के सदस्य डॉ. ए. के. मर्चेंट को मिला। प्रोफेसर शास्त्री बारे में दस डॉक्टरेट थीसिस लिखे जा चुके हैं।
संस्कृत भाषा और साहित्य में उनका योगदान कई गुना है। डॉ. मर्चेंट से हुई बातचीत के दौरान उन्होंने बहुत ही प्रसन्न्तापूर्वक प्रभुधर्म के बारे में सुना और कुछ पवित्र लेखों का संस्कृत में अनुवाद करने के सुझाव को भी सहर्ष स्वीकार किया। अगले दिन डॉ. मर्चेंट को प्रोफेसर शास्त्री द्वारा दोपहर के भोजन लिए आमंत्रित किया गया उस दौरान पवित्र भूमि की एक विशेष एल्बम उन्हें भेंट की गई। प्रोफेसर और उनकी पत्नी दोनों ही बहुत सज्जन हैं। डॉ. मर्चेंट उनके साथ मित्रता और प्रभुधर्म का अध्ययन जारी रखने के लिए तत्पर हैं।

श्री मसूद अजादी और सुश्री पर्ल मोतीवाला का विवाह


श्री मसूद अजादी और सुश्री पर्ल मोतीवाला का विवाह नासिक, महाराष्ट्र में 9 फरवरी 2013 को बहाई विधिविधान के अनुसार सम्पन्न हुआ। इस मांगलिक बेला के अवसर पर परिजनों के अलावा अन्य बहाई मित्रगण और रिश्तेदार भी उपस्थित हुए।

भोपाल के बहाई भवन में धार्मिक गतिविधियाँ


मध्यप्रदेश, भोपाल के बहाई भवन में 5 से 12 फरवरी-2013 तक एक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें सत्य सांई स्कूल भोपाल की 29 छात्राओं ने रूही पुस्तक-1 व 3 का अध्ययन पूरा किया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का संचालन श्रीमती साधना मित्रा ने किया एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम पश्चात् इन छात्राओं द्वारा 9 प्रार्थना सभाएँ एवं 71 बच्चों के साथ 11 कक्षाएँ प्रारम्भ की गईं। इन शिक्षकों को श्रीमती साधना मित्रा द्वारा सप्ताह में एक बार पाठ की तैयारी करने में सहयोग प्रदान किया जा रहा है।

खगडि़या और अलौली क्लस्टरों की गतिविधियाँ

11 और 12 फरवरी 2013 को सलाहकार ओमिद सियोशानसियान ने सहायक मण्डल सदस्यों श्री रजनीश सिंह के साथ मिलकर अलौली और खगडि़या क्लस्टरों का भ्रमण किया। यह पहला अवसर था जब सलाहकार ओमिद ने उत्तरी बिहार का भ्रमण किया है। प्रशासनिक दृष्टि से खगडि़या क्षेत्र 7 ब्लॉक में विभाजित है, सात ब्लॉक तीन क्लस्टरों: खगडि़या, अलौली, बैलदुर में विभाजित हैं। खगडि़या के मित्रगण 12 गाँवों के साथ कार्य कर रहे हैं। इन बारह गांवों में से खटाहा और गौचारी पर सघन गतिविधियों के केन्द्र के लिए विचार किया जा रहा है, दोनों में 50 से अधिक मूल गतिविधियों चल रही हैं। अलौली के मित्रगण 5 गांवों के साथ कार्य कर रहे हैं। हथवान और राउन गांवों में 50 से अधिक गतिविधियों हो रही हैं। खगडि़या के भ्रमण में मुख्यतः क्लस्टर एजेंसियों के साथ संयुक्त बैठक शामिल थी, जिसमें विभिन्न बिन्दुओं पर चर्चा की गई। जैसे-पिछले 10 महीनों के दौरान स्टडी सर्कल में प्रतिभागियों का नियमित प्रवाह, पिछले कुछ चक्रों में बच्चों और किशोरों की संख्या कायम रखना, पिछली अवधि के दौरान क्लस्टर में कक्षाओं में कमी के विभिन्न कारण, संसाधनों और शिक्षण मूल गतिविधियों में महिलाओं की प्रतिभागिता का स्तर और गांव की समस्त जनसंख्या पर गतिविधियों का प्रभाव। खगडि़या क्लस्टर में विषय स्पष्ट थे, अलौली क्लस्टर में शिक्षण मूल गतिविधियों में महिलाओं की प्रतिभागिता की स्थिति विपरीत है। 33 शिक्षकों में से केवल एक महिला शिक्षक और 35 अनुप्रेरकों में से केवल 3 महिला अनुप्रेरक हैं। यह महसूस किया गया कि यह शायद एजेंसियों द्वारा इस क्लस्टर में पुरुष संयोजकों पर ही ध्यान दिये जाने के कारण हुआ। खगडि़या और अलौली के सघन गतिविधियों के केन्द्र में जो विकास देखने को मिला वह था आध्यात्मिक शिक्षण कार्यक्रम में बच्चों और किशोरों का उच्च प्रतिशत में भाग लेना।

मार्च 2013 - सांगली मे बहाई गतिविधीयाँ


महाराष्ट्र में सांगली की सरकारी काॅलोनी में उन युवाओं के साथ जो किशोर कार्यक्रम पूर्ण कर चुके हैं रूही पुस्तक-1 का स्टडी सर्कल शुरू किया गया। जैसे ही उन्होंने प्रार्थना की इकाई पूर्ण की उन्होंने अपने समुदाय में भक्तिपरक बैठक का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने अपने अभिभावकों और पड़ोसियों को आमंत्रित किया गया। 15 अभिभावक इस भक्तिपरक बैठक में शामिल हुए। भक्तिपरक बैठक समाप्त होने के बाद अभिभावकों ने कहा कि यह बैठक बहुत सुन्दर थी और कहा कि वे अपने घरों में भी इस प्रकार की भक्तिपरक बैठकें करना चाहते हैं। 10 फरवरी को इससे भी बड़े पैमाने पर भक्तिपरक बैठक का आयोजन किया गया, जिसमें उनके तथा किशोरों के अभिभावकों को भी आमंत्रित किया गया। 30 लोगों ने इस भक्तिपरक बैठक में भाग लिया। उनके अभिभावकों ने इस कार्यक्रम की व्यवस्था करने में उनकी मदद की। पहले प्रार्थनायें की गईं और फिर बाद में स्थानीय आध्यात्मिक सभा द्वारा रूही पुस्तक-1 पूर्ण करने वालों को प्रमाणपत्र दिये गये। रूही पुस्तक-1 का अध्ययन करने वाले प्रतिभागियों ने अपने अनुभव सुनाये और प्रार्थना का महत्वतथा जीवन और मृत्यु क्या हैइस विषय में भी बताया। किशोरों ने भी अपने अनुभव सभी के साथ बांटे और बहाई गीत तथा एकता पर नाटक प्रस्तुत किये। अंत में श्री परिमल महातो ने अभिभावकों को स्त्री-पुरुष तथा आध्यात्मिक और भौतिक शिक्षा में समानता समझने में मदद की।

गुजरात का 21वाँ शीतकालीन स्कूल



गुजरात ने अपना 21वां बहाई शीतकालीन स्कूल सपुतरा (डांग) में 4 से 6 जनवरी 2013 तक आयोजित किया, जिसमें बड़ी संख्या में युवाओं द्वारा प्रतिभागिता दर्ज की गई। राज्य बहाई परिषद ने इस शीतकालीन स्कूल के विषय को ‘‘मेरा घर-शिक्षण के लिए एक केन्द्र’’ नाम दिया। सभी विषयों पर चर्चा की गई और अध्ययन शीतकालीन स्कूल के विषय के इर्द-गिर्द रहा, जिसका लाभ 19 क्लस्टरों से आये 250 प्रतिभागियों ने उठाया। कार्यशाला के दौरान मित्रों को समूहों में विभाजित करके विश्व न्याय मन्दिर द्वारा दिये गये मार्गनिर्देशानुसार प्रत्येक घर को ‘‘शिक्षण के लिए केन्द्र’’ बनाने के तरीके पर चर्चा की गई। यह आशा की जाती है कि इस शीतकालीन स्कूल द्वारा उत्पन्न चेतना और गति से मूल गतिविधियों में गुणात्मकता और चले रहे शिक्षण प्रयासों में वृद्धि परिलक्षित होगी।

विश्व न्याय मन्दिर - 8 फरवरी, 2013

परम प्रिय मित्रगण
हमें इस बात की प्रसन्नता है कि पाँच वर्षीय योजना की प्रक्रियाएँ प्रत्येक समुदाय में सेवा भाव जागृत कर रही हैं और सार्थक उद्देश्यपूर्ण कार्यों को प्रोत्साहित कर रही हैं। प्रत्येक दिन इस बात के प्रमाण मिल रहे हैं कि किस तरह व्यक्ति - व्यक्ति के हृदय तक पहुँचने, उसकी आत्मा को प्रभु के वचनों से आलोकित करने और उन्हें समाज को बेहतर बनाने में योगदान देने के लिए आमंत्रित करने के कार्य, समय के साथ-साथ, मानवजाति का व्यापक हित करने में सक्षम होंगे। पूरे समुदायसमूह के इन सुव्यवस्थित सामूहिक प्रयासों में पाँच वर्षीय योजना के तत्वों के घुल-मिल जाने से यह सामूहिक अभियान और भी स्पष्ट तथा प्रभावी हो गया है तथा इसकी व्यापक प्रभावशीलता और तेजी से स्पष्ट होती जा रही है। इस तरह के समुदायसमूह में अनुभवी अनुयायियों के साथ-साथ प्रभुधर्म को स्वीकार करने वाले नए मित्रों को भी एक साथ काम करने का अवसर मिलता है, चाहे उनकी आयु या पृष्ठभूमि कुछ भी हो। सेवा कार्यों में, एक दूसरे के सहयोग से, योजना को लागू करने में प्रत्येक की भागीदारी सुनिश्चित होती है। महत्वपूर्ण गतिविधियों में लगे बहाई जगत के परिदृश्य से एक गतिविधि विशेष रूप से आकृष्ट करती है - वह है प्रत्येक महाद्वीप में युवाओं का निर्णायक योगदान। इस योगदान में, ”प्रभुधर्म की भावी प्रगति और विस्तारमें प्रिय धर्मसंरक्षक द्वारा युवाओं में व्यक्त की गई आशाओं की परिपुष्टि नज़र आती है। उस विश्वास की पुष्टि भी जिस विश्वास से संरक्षक ने युवाओं के कंधों पर मानव समुदाय की निःस्वार्थ सेवा की भावना को जागृत रखने का दायित्वसौंपा था। उन युवाओं की संख्या पर भी हम आश्चर्यचकित हैं, जिन्होंने, बहाई समुदाय के साथ बहुत थोड़े समय के परिचय के बाद ही, अपने आपको अर्थपूर्ण सेवा-कार्यों में लगा लिया और बड़ी तेजी़ से प्रभुधर्म के समुदाय-निर्माण के प्रयासों में निष्ठापूर्वक जुड़ गये हैं। निश्चित रूप से हम उनके और उनके समान सोच रखने वाले युवाओं के उन उत्सुक प्रयासों की सराहना किये बग़ैर नहीं रह सकते जिन्हें सम्पादित कर उन्होंने अपने आसपास के लोगों, विशेषकर स्वयं से कम उम्र के युवाओं, के आध्यात्मिक और सामाजिक विकास में मदद करने का बीड़ा उठाया है। स्वार्थ के इस दौर में, जब आध्यात्मिक जुड़ाव भी पुरस्कार और व्यक्तिगत लाभों के तराजू पर तौला जाता है, 15 से अधिक और 30 वर्ष से कम के ऐसे युवाओं को निःस्वार्थ सेवा में लगे देखना वास्तव में मन को छूने वाला है, जो बहाउल्लाह के विचारों से प्रेरित हैं और जो स्वयं की अपेक्षा दूसरों की ज़रूरतें पूरी करने को तत्पर हैं। ऐसे उच्च विचारों वाले युवा अपने प्रयासों से, साथ-साथ पूरे समुदाय को प्रदत्त अपनी ऊर्जा से, लक्षित प्रयासों में अपने इतने प्रभावशाली योगदान देंगे, कि यह इन प्रयासों की अपेक्षित गतिवृद्धि के लिए, शुभ संकेत है। पिछले दो वर्षों के दौरान जो कार्य सम्पन्न हुए हैं, निश्चित रूप से न केवल वर्तमान योजना के अंतिम वर्षांे में, बल्कि रचनात्मक काल की पहली शताब्दी के शेष वर्षों में उससे कहीं अधिक कार्य सम्पन्न होंगे। इस शक्तिसम्पन्न कार्य को प्रोत्साहित करने के लिए और इस तेजी से सिमट रहे अंतराल में पूरी तरह अपनी जि़म्मेदारियों के निर्वहन के लिए, युवाओं का आह्वान करते हुए हम जुलाई से अक्टूबर माह के बीच विश्व के विभिन्न स्थानों पर 95 युवा सम्मेलनों के आयोजन की घोषणा करते हैं: एकरा, अदीस अबाबा, ऑगस्किलिंटेस, अलमाटी, एंताननरिवो, ऐपिया, अटलांटा, ऑकलैंड, बाकू, बंगलौर, बांगुई, बरदिया, बैटमबैंग, भोपाल, भुवनेश्वर, बोस्टन, ब्राजीयि, ब्रिजटाडन, बुकावु, कैली, कैनोआस, कोर्टेजेना, डि इंडियास, चैन्नई, चिबोंबो, शिकागो, चिसिनों, कोचांबा, डाइगनाव, डायार, डलास, डैनान, दारूस्लाम, ढाका, डेनि प्रो पेत्रोवस्क, दरहाम (अमेरिका) फ्रैकफर्ट, गुवाहटी, हेलसिंकी, इस्तांम्बुल (2), जकार्ता, जोहान्सबर्ग बजे, कदुगनावा, कम्पाला, कनंगा, कराची, स्बुजंद, किंशास, कोलकाता, कुचिंग, ला, लिमा, लंदन, लुबुम्बाशी, लखनऊ, मकाऊ, मैंड्रिक, मनीला सातुंडा सॉय, मौरक्को, अविनी लुंगा, म्ज़ुजू, नादी, नैरोबी, नई दिल्ली, ऑकलैंड, ओरावलो, युआगावुगू, पंचगनी, पेरिस, पटना, पर्थ, फीनिक्स, पोर्ट-ओ-प्रिंस, पोर्ट डिम्सन, पोर्ट मोर्सबी, पोर्ट विला, सैन डियागो, सैन जोस (कोस्टारिका), सैन जोस सिटी (फि़लीपींस), सेन साल्वाडोर, सेटियागो, सैपेल, सारह, सेबरेंग पेराप, साउथ टारावा, सिडनी, तबिलिसी, थायलो, टिराना, टोंरटो, उलानबातार, बैकुंवर, वेरोना और याउंडे में ये सम्मेलन होंगे। हम इन सम्मेलनों में उन सभी युवाओं को आमंत्रित करते हैं जो पाँच वर्षीय योजना की गतिविधियों और प्रणालियों को, एक बेहतर समाज के निर्माण की दिशा में, अभियान का सशक्त माध्यम मानते हैं और सभी बहाइयों से हम प्रतिभागियों के लिए, जिनके प्रयासों पर बहुत कुछ निर्भर करता है, हार्दिक समर्थन की कामना करते हैं। प्रिय मित्रों, युवा अनुयायियों की प्रत्येक पीढ़ी के समक्ष मानवजाति के भविष्य के लिए योगदान करने का अवसर आता है, जो उनके जीवन काल में अतिविशिष्ट होता है। वर्तमान पीढ़ी के लिए वह समय आ गया है जब वे विचार करें, संकल्प लें, स्वयं को उस सेवा में समर्पित कर दें जिससे आशीषों की निर्झरणी प्रवाहित होगी। पावन देहरी पर अपनी प्रार्थनाओं में हम प्राचीनतम सौन्दर्यसे निवेदन करेंगे कि वे पथ से विचलित और दिग्भ्रमित मानवजाति के बीच, उन पवित्र शुद्ध आत्माओं को स्पष्ट दृष्टि का वरदान दें। उन युवाओं को जिनकी निष्ठा और विवेक को दूसरों के दोषों के कारण तथा अपनी किसी कमी के कारण सक्रिय न हो पाने पर, कम करके न आँका जाये; उन युवाओं को जो मार्गदर्शन के लिए मास्टरकी ओर उन्मुख होंगे और अंतरंग मित्रों के दायरे में आने वाले अन्य मित्रों को भी इस ओर उन्मुखकरेंगे; उन युवाओं को, जिनकी अंतरात्मा समाज की त्रुटियों को देखकर उन्हें इसके परिवर्तन की दिशा में काम करने को प्रेरित करेगी, न कि इससे पलायन करने को; वे युवा जो किसी भी कीमत पर, असमानता के हर रूप को अस्वीकार करेंगे और हर सम्भव प्रयास करेंगे कि न्याय के आलोक की किरणें समान रूप से पूरे विश्व पर अवतरित हों। -विश्व न्याय मन्दिर

बहाई स्कूल उदयपुर, त्रिपुरा में तीन दिनों के लिए किशोर शिविर का आयोजन


ब्रिल्यंट स्टार स्कूल उदयपुर, त्रिपुरा में तीन दिनों के लिए किशोर शिविर का आयोजन किया गया, जिसमें 50 से अधिक स्कूल के विद्यार्थियों ने इस शिविर में भाग लिया। इसमें किशोरों ने आस्था की चेतनाका अध्ययन किया। यह शिविर शिक्षकों, स्कूल स्टाफ, प्रशिक्षण संस्थान बोर्ड और किशोर संयोजकों के पूर्ण सहयोग से सफल हो सका। सभी विद्यार्थियों ने इसमें आनन्द लिया और बहुत से नैतिक मूल्यों के विषय में उन्होंने सीखा। इस शिविर में विद्यार्थियों के साथ-साथ शिक्षकों ने भी बहुत कुछ प्राप्त किया। समूह अध्ययन के दौरान विद्यार्थियों में अभिव्यक्ति और महत्वपूर्ण सोच कौशल देखने को मिला जिसे प्रोत्साहित किया गया।

भुवनेश्वर, उड़ीसा में बहाई विवाह

श्रीमती नादिया मोग्बेलपुर और श्री तुराज़ मोग्बेलपुर के सुपुत्र श्री फुरूतन मोग्बेलपुर का विवाह जर्मनी की सारा शाबाज़ के साथ 6 दिसम्बर 2012 को भुवनेश्वर, उड़ीसा में बहाई विधिविधान के साथ सम्पन्न हुआ।

बहाई चेयर फॉर स्टडीज़ इन डेवेलपमेंट, देवी अहिल्या विश्व विद्यालय इंदौर द्वारा आयोजित कार्यशाला के प्रतिभागी

बहाई काउन्सिलर श्री. पयाम शोगी

चंडीगढ़ में संस्थान अभियान सम्पन्न

चंडीगढ़ के बहाई भवन में 22 दिसम्बर 2012 से 4 जनवरी 2013 तक एक संस्थान अभियान का आयोजन किया गया। इस अभियान में 15 मित्रों ने भाग लिया। 10 मित्रों ने पुस्तक-1 और 5 तथा 4 मित्रों ने पुस्तक-7 का अध्ययन पूर्ण किया। इस अभियान में सभी प्रतिभागी बहुत प्रसन्न थे और बहाउल्लाह के लेखों का अध्ययन करने के उपरान्त उनमें से प्रत्येक में परिवर्तन देखा जा सकता था। अपने बच्चों में इस परिवर्तन को देखते हुए अभिभावक भी बहुत खुश थे। 4 जनवरी समापन समारोह के दिन सभी प्रतिभागियों के अभिभावकों को भी बहाई भवन में आमंत्रित किया गया, लगभग 15 अभिभावक उपस्थित हुए। श्री विनोद छेत्री ने समाज की समुन्नति में बहाई धर्म के उद्देश्य के बारे में बताया। श्री नंदकिशोर ने चार मूलगतिविधियों के बारे में बताया जिन्हें बहाई समुदाय द्वारा सारे विश्व में चलाया जा रहा है। श्री पुरन कटवाल ने अभिभावकों से अनुरोध किया कि वे युवाओं को समर्थन दें ताकि वे अपना समय किशोरों के साथ कार्य करने में समर्पित करें और उन्हें सशक्त करें, रूही संस्थान के द्वारा तैयार की गई सामग्री के व्यवस्थित अध्ययन के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति की शक्ति और जीवन में सही निर्णय लेने की क्षमता विकसित करें।  

केरल का 34वाँ शीतकालीन स्कूल सम्पन्न

राज्य बहाई परिषद केरल ने 24 से 27 जनवरी 2013 तक अपने 34वें शीतकालीन स्कूल का आयोजन किया, जिसमें केरल के अलावा कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से आये 150 प्रतिभागियों ने भाग लिया।
प्रतिभागी
कार्यक्रम के पहले दिन 24 जनवरी को नॉर्थ परवूर और अलवे क्लस्टरों के मित्रों द्वारा युनिटी फीस्ट का आयोजन किया गया, जिसका उद्घाटन श्री बी0 अफशिन ने दीपक प्रदीप्त करके किया। इस कार्यक्रम में मुख्य आकर्षण पिछले शीतकालीन स्कूलों की स्लाइड शो प्रस्तुति थी, जिसके माध्यम से मित्रगण बीते हुए समय की याद ताजा कर सके। उनमें से कुछ मित्र ऐसे थे जो 1978 से शीतकालीन स्कूल में भाग ले रहे हैं वे थे-डॉ. के. एमरामानन्दन, श्री के. के. गोपी और श्री ए. गोपीनाथ।
कार्यक्रम के दूसरे दिन परिषद की सचिव श्रीमती बिनारा घनबरी ने सभी उपस्थित मित्रों का स्वागत किया और शीतकालीन स्कूल के विषय में बताया, जो विश्व न्याय मन्दिर के 28 दिसम्बर 2010 के संदेश को ध्यान में रखकर चुना गया, जो हमें ‘‘नई विश्व व्यवस्था की दिशा में एक गमन उत्पन्न करने’’ के लिए स्पष्ट विवरण देता है। वे इस क्षण की परिकल्पना ‘‘अटूट क्रम’’ के रूप करते हैं, जो किसी के साथ बहाई धर्म के बारे में साधारण बातचीत और एक व्यक्ति में बहाउल्लाह और मानवजाति की सेवा करने और उसमें ऐसा करने की क्षमता का निर्माण करने की इच्छा उत्पन्न करने के उद्देश्य के साथ शुरू होती है। यह अटूट क्रम अंततः ‘‘विकास के कार्यक्रम’’ के लिए होता है। यह एक सुन्दर और प्रगाढ़ मार्ग है जो एक सार्थक बातचीत के साथ शुरू होता है। उन्होंने कहा कि हम सभी विश्व न्याय मन्दिर द्वारा दिखाये गये सेवा के पथ पर चलने का प्रयास कर रहे हैं।
श्री बी. अफशिन ने अपने वक्तव्य में विशेष रूप से इस बात का उल्लेख किया कि ‘‘जैसाकि हमारे परमप्रिय मास्टर ने आशा व्यक्त की है कि अनुयायियों के हृदयों में एक-दूसरे के लिए प्रेम का अतिप्रवाह हो बीच में कोई मतभेद न हो, सब एक परिवार की भांति हों।’’
राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभा के सदस्य श्री पी. के. प्रेमराजन ने इस अवसर पर अपने उद्बोधन में ‘‘व्यक्तिगत पहल’’ के बारे में बोलते हुए समाज में परिवर्तन के लिए मूलगतिविधियों में शामिल व्यक्ति के महत्व के बारे में बताया। समारोह के अंतिम दिन उन्होंने पावर प्वाइंट के माध्यम से ‘‘जीवनरक्त कोष/हुकूकुल्लाह’’ के बारे में मित्रों को जागरूक किया। श्री एम. सरवानन द्वारा प्रश्नोत्तरी का कार्यक्रम किया गया, जिसमें सभी मित्रों ने उत्साहपूर्ण भाग लिया। श्रीमती इज्ज़त अंसारी ने ‘‘महिला-प्रथम शिक्षका’’ एक महत्वपूर्ण भूमिका जो एक माँ निभाती है, को खूबसूरती से वर्णित किया। जब एक बच्चा दुनिया में आता है तो माँ को ध्यान रखना चाहिए कि घर के अन्दर ऐसा माहौल हो जो बच्चे की आध्यात्मिक और भौतिक प्रगति के लिए अनुकूल हो। उसके उपरान्त श्रीमती इज्ज़त अंसारी और सुश्री के. एस. शोभा द्वारा एक कार्यशाला आयोजित की गई, जो बच्चों/किशोरों के हित से सम्बन्धित विश्व न्याय मन्दिर के रिज़वान 2000 के संदेश पर आधारित थी। सहायक मण्डल सदस्य श्री पी. के. बाबू और श्री उनीज़ एमसी. द्वारा रूही पुस्तक-8 पर आधारित ‘‘बहाउल्लाह की संविदा’’ पर अपनी प्रस्तुति दी गई। परिषद के कोषाध्यक्ष श्री सीपी. विनोद ने शीतकालीन स्कूल की वित्तीय रिपोर्ट प्रस्तुत की और घोषणा की कि यह पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर है। राज्य बहाई परिषद यह आशा करती है कि मित्रगण शीतकालीन स्कूल से प्रेरणा और ऊर्जा प्राप्त करके अपने क्लस्टरों में वापस लौटेंगे।

बहाई प्रतिनिधि मंडल की महाराष्ट्र के राज्यपाल से भेंटवार्ता

एक बहाई प्रतिनिधिमण्डल ने जिसमें सलाहकार राजन सावंत, डॉ. मंगेश तेली, श्री लेसन आज़ादी, डॉ. पंडित पालंदे और श्रीमती ज़ीना सोराबजी शामिल थे, हाल ही में महाराष्ट्र के राज्यपाल महामहिम श्री शंकरनारायण से मुलाकात की।

महाराष्ट्र के राज्यपाल के साथ बहाई प्रतिनिधि मंडल बायें से दायें - डॉ. मंगेश तेली, श्रीमती ज़ीना सोराबजी, महामहिम श्री शंकरनारायण, सलाहकार राजन सावंत, श्री लेसन आज़ादी और डॉ. पंडित पालंदे

राज्यपाल ने उनका हार्दिक स्वागत किया। प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि वे उन्हें बहाई धर्म के मौलिक सिद्धांत और हमारे द्वारा नैतिक शिक्षा पर दिये जा रहे बल के विषय में अवगत कराना चाहते हैं। राज्यपाल ने प्रत्युत्तर में कहा कि दुर्भाग्य से नैतिक मूल्य अब समाप्त हो गये हैं। परिवार बिखर रहे हैं और संयुक्त परिवार की प्रणाली, जो युवा पीढ़ी को नैतिकता प्रदान करती थी, अब नहीं रही है, मध्य पीढ़ी अब अपने बड़ों के बिना रहना चाहती है। प्रतिनिधिमंडल ने शहरी और ग्रामीण दोनों स्थानों पर बहाई शिक्षाओं से प्रेरित स्कूलों के बारे में बताया जो बच्चों में नैतिक मूल्यों को आत्मसात करने के लिए उन्हें शिक्षित कर रहे हैं। डॉ. तेली ने उल्लेख किया कि हमारे पास बहाई अकादमी जैसे प्रशिक्षण संस्थान हैं, जो विश्व- विद्यालय के शिक्षकों और छात्रों को उनके आध्यात्मिक आयाम को विकसित करने के लिए प्रशिक्षण देते हैं। श्री आज़ादी ने समझाया कि अकादमी क्या कार्य कर रही है और यह कई सालों से इस कार्य को करती आ रही है। इसने कुछ विश्वविद्यालयों के साथ समझौता ज्ञापन किया है जो इसके प्रशिक्षण की पेशकश के साथ बहुत खुश हैं।
बहाई धर्म की और अधिक जानकारी युक्त किट राज्यपाल को भेंट की गई और इसके साथ ही उन्हें दिल्ली में बहाई उपासना मन्दिर का भ्रमण करने के लिए भी आमंत्रित किया गया।

Tuesday, February 5, 2013

Some Quotes about Islam from Babi and Baha’i Writings

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Ali Muhammad Bab wrote:
“Since at the time when the Holy Qur’an was revealed the people of those days prided themselves over their mastery of the language, Allah sent down this book in such a beautiful, vigorous and perfect style of language that nothing better can be imagined. And in this book the truth of the claims of the Holy Prophet Muhammad has been established on the most evident, manifest and irrefutable basis” (Al-Bayan Ms.)

Abdul Baha’ writes:
“Among the miracles of the Holy Qur’an one is that it stands on a sure foundation of reason and wisdom in everything it teaches. On the basis of complete certainty it has propounded a sharia which for the people of this age forms the very essence of spiritual life. In addition to formulating a sharia the Qur’an also explains some weighty points of History and Mathematics which run counter to the theories accepted in those days, and it has been proved that the Qur’anic view is the correct one” .1

Baha’ullah himself says:
“The faulty intelligence and grasp of human beings cannot fully comprehend the vast body of truths embodied in the Holy Qur’an, just as a spider cannot hunt down and catch a bird” .2

‘Abdul Fadal, a well-known Baha’i missionary, says:
“These verses of the Holy Qur’an clearly indicate that the principles of sharia, its details, the arguments which support it, its origin and achievement, in short everything has been fully and conclusively dealt with in it, no aspect of any worthwhile question having been left incomplete or inconclusive”3
Baha’ullah wrote during his life at ‘Akka: “The sharia of Muhammad is complete and perfect in every way. The fault lies with the Muslims that they do not live up to it. If the Muslims were to act upon it, there would be peace in the whole world”4
  1. Khatabat Abdul Baha, Volume 1, page 5
  2. Haft Wadi, page 43
  3. Al-Durarul Bahiyah, page 134
  4. Babul Hayat, page 68

Friday, February 1, 2013

Summary of Bahá’í Requirements Concerning Marriages with Followers of other Religions

"In your letter of 1 July 1979 you requested the Universal House of Justice to provide you with a statement on the Bahá’í requirements concerning marriages with followers of other Faiths.

The House of Justice has instructed us to send you the following summary.

1. When a Bahá’í is marrying a non-Bahá’í, and the non-Baha'i wishes to have the ceremony of his (or her) own religion the Bahá’í party may take part in it under the following conditions:

1.1 That all concerned, including the officiating priest, know that he is a Bahá’í.

1.2 That he does not, by having the ceremony, renounce his faith.

1.3 That he does not undertake any vow to act contrary to Bahá’í principles (such as to bring up the children in another Faith)

1.4 That the ceremony be held on the same day as the Bahá’í ceremony, either before or after it.

2. If a civil ceremony is required by law in addition to the two religious ceremonies, all three ceremonies must be held on the same day.

3. If a Bahá’í has the marriage ceremony of another religion and, in so doing, violates any of the above requirements, he is liable to loss of his voting rights.

4. If voting rights are removed and the offender requests reinstatement, they may be restored, if the Assembly is satisfied that the believer is repentant, subject to the following conditions:

4.1 If the Bahá’í dissimulated his faith or undertook a vow contrary to Bahá’í principles in order to have the ceremony of another religion and if the holding of the ceremony was dependent upon such an act, he must dissolve the marriage. His voting rights may then be restored, but, if he still wishes to be married to the same woman, he can do so only if they marry in accordance with the requirements of Bahá’í Law.

4.2 If the Bahá’í dissimulated his faith or undertook a vow contrary to Bahá’í principles, and the holding of the marriage ceremony of the other faith was not dependent upon such an act, it is not necessary to dissolve the marriage, but the Bahá’í must do whatever is necessary to officially inform the appropriate authorities that he was a Bahá’í at the time of his marriage, and to withdraw the vow. Following the taking of these steps the Bahá’ís voting rights may be restored on condition that a Bahá’í marriage ceremony be held immediately after their restoration.

4.3 If the Bahá’í neither dissimulated his faith nor undertook any vow contrary to Bahá’í principles, and his only offence was failure to have the Bahá’í ceremony on the same day as the ceremony of the other religion (or the civil ceremony), his voting rights may be restored on condition that a Bahá’í marriage ceremony be held immediately after their restoration.

5. The holding of a Bahá’í marriage ceremony, which would permit the restoration of voting rights is subject to the same requirements as any other Bahá’í marriage, and if a Bahá’í has had a civil ceremony of another religion without a Bahá’í ceremony and without obtaining consent of parents, the Assembly, before granting the Bahá’í ceremony, must be satisfied that the consent of the parents is freely given.

6. If a Bahá’í has a civil marriage or the marriage of another religion, and the Assembly is satisfied that this was because he (or she) was genuinely ignorant of Bahá’í Law 'on the subject, the Assembly may excuse the fault. In such a case the person is recognized as married in the same way as if he had been married before accepting the Faith. It is thus neither necessary nor possible for him to have a Baha'i ceremony." (From letter written on behalf of the Universal House of Justice to the National Spiritual Assembly of Greece July 15, 1980).

Monday, January 28, 2013

At the age of 14, she is a mother

On her wedding day, Krishna was just 11 and her husband Gopal Kishan, 13. Today, at the age of 14, she’s mother of a four months old boy. Krishna nearly died in childbirth and had to be hospitalized for days following the delivery. Gopal describes his wife's recovery as "nothing less than a miracle." Gopal, who wanted to have a child and risk his young wife’s life “because of boredom”, now regularly comes home drunk as he hasn’t got any work, as the soybean fields which his family owns are not that fertile now. Although the legal age for marriage in India is 18, the law remains a farce as 40% of the world's child marriages occur in India. Although the UN has been working hand in hand with the government of India to raise awareness, strengthen law enforcement and invest in the education of girls, many of our leaders still consider child marriage as a solution to protect girls from sexual atrocities like rape. These heartbreaking photos throw light on the social evil of child marriage through the life of Krishna and her husband.
On her wedding day, Krishna was just 11 and her husband Gopal Kishnan 13, Today at the age of 14 she is the mother of 4 months old boy. Krishna nearly died in childbirth and had to be hospitalized...
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Sunday, January 13, 2013

Tuesday, January 8, 2013

Anger online as Saudi in his 90s marries 15-year-old

The case of a Saudi man in his 90s who has married a girl of 15 has drawn widespread criticism on Twitter and other social media in the country.

Some Saudis have been asking whether the case amounts to trafficking or child abuse.

Local media reports say the man paid a dowry of $17,000 (£10,500) in order to get married to the girl.

A series of similar cases in recent years has drawn attention to the issue of child marriage in the kingdom.

The girl in the latest case was so frightened that on the wedding night she locked her husband outside the bedroom and eventually escaped back to her parents, local media reports say.

The husband is reported to be considering legal action to get either her or his dowry back.

The case reflects how online social networks have become a vital forum for public discussion in what has long been an opaque, even closed society, with Saudis now taking to Twitter faster than anywhere else in the world, the BBC's Middle East analyst Sebastian Usher reports.

Thousands of girls under 14 are reported to have been married off to richer, much older men, he adds.

There appears to be widespread support in Saudi society for a minimum age for marriage, which the authorities say they are working towards.

However, some of the most conservative religious scholars are still resisting the idea, while insisting that girls must have reached puberty before marriage.