Tuesday, January 24, 2012

हाजी मुहम्मद की कहानी

हाजी मुहम्मद बहाउल्लाह के ज़माने में रहते थे और जैसा कि आप जानते हैं बहाउल्लाह ने इस युग के लिये ईश्वर की शिक्षाएँ प्रकट की हैं। एक व्यापारी के रूप में हाजी मुहम्मद अपने सभी लेन-देन में ईमानदार थे और अपनी विश्वासपात्रता के कारण जाने जाते थे। कुछ समय तक उनका कामकाज उन्हें अक्का लाता रहा। एक दिन जब वे अपने कार्यालय में बैठे थे तब बहाउल्लाह की तरफ से एक अत्यावश्यक कार्य का संदेश लेकर अब्दुल-बहा कमरे में आये। हाजी मुहम्मद को तुरन्त अरब के जेद्दाह शहर के लिये रवाना होना था। उन्होंने अब्दुल-बहा से पूछा कि क्या उन्हें जाने से पहले बहाउल्लाह की उपस्थिति में प्रवेश करने का उपहार प्राप्त हो सकता था। अब्दुल-बहा ने कहा कि इसके लिये समय नहीं था क्योंकि जहाज़ किसी भी क्षण रवाना हो सकता था। आज्ञा का पालन करने की हाजी मुहम्मद की चाह इतनी आदर्श थी कि उनके मन में बहाउल्लाह के आदेश का पालन करने के सिवाय और कोई विचार नहीं था। जैसे ही हाजी मुहम्मद जहाज़ में सवार हुए जहाज़ रवाना हो गया। केवल तब उन्हें खयाल आया कि इस आनन-फानन में उन्हें अब्दुल-बहा से अरब की अपनी यात्रा का उद्देश्य पूछने का विचार ही नहीं आया था। लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी! फिर भी वे चिन्तित नहीं थे। उन्हें पक्का विश्वास था कि जेद्दाह पहुँचते ही ईश्वर उन्हें राह दिखायेंगे। उस दिन समुद्र असाधारण रूप से तुफानी था और समुद्री यात्रा जोखिम भरी थी। सभी को चिन्ता थी कि जहाज़ डूब जायेगा--सभी को यानी हाजी मुहम्मद को छोड़कर अन्य सभी को। वे जानते थे कि वे सुरक्षित रहेंगे और जहाज़ सही सलामत जेद्दाह पहुँच जायेगा क्योंकि बहाउल्लाह द्वारा उन्हें उस शहर में एक कार्य पूरा करने के लिये सौंपा गया था। और सचमुच जहाज़ अपने गन्तव्य स्थान पर सुरक्षित पहुँच गया। जहाज़ से उतरने के बाद हाजी मुहम्मद ने भीड़ में दो लोगों को आपस में फारसी में बात करते हुए सुना। खुद एक फारसी होने के नाते वे उन दो लोगों के पास गये और पाया कि वे भी बहाई थे और बहाउल्लाह से मिलने के लिये अक्का जा रहे थे। उन्हें उनकी आस्था के जुर्म में दस वर्षों तक अन्यायपूर्वक कैद में रखा गया था और वे अभी अभी रिहा किये गये थे। पावन भूमि तक की यह उनकी पहली यात्रा थी और उन्हें सहायता की ज़रूरत थी। हाजी मुहम्मद को अब यह बात स्पष्ट रूप से समझ में आ गयी कि जेद्दाह में उनका उद्देश्य इन दो आत्माओं को अक्का पहुँचने में तथा बहाउल्लाह की उपस्थिति में प्रवेश करने में सहायता करने का था--एक ऐसी ज़िम्मेदारी जो उन्होंने बड़ी सावधानी और देखभाल से पूरी की।

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