मिर्जा़ अबुल-फज़्ल |
शायद आपने मिर्जा़ अबुल-फज़्ल के बारे में पहले सुना होगा, जो आरम्भिक दौर के अनुयायियों में से एक थे तथा बहाउल्लाह के दिनों में बहाई बने थे। मिर्जा़ अबुल-फज़्ल अपनी पैनी अंतदृष्टि, अपने ज्ञान की दौलत, तथा जटिल आध्यात्मिक अवधारणाओं को समझने एवं समझाने की अपनी योग्यता के लिये जाने जाते थे। अपनी युवावस्था में उन्होंने गणित, खगोल षास्त्र, और दर्षनशास्त्र जैसे विषयों का गहरा अध्ययन किया था साथ ही उन्होंने अपनी मातृ भाषा फारसी के साथ-साथ अरबी भाषा में भी महारथ हासिल की थी। जब वे एक युवक ही थे, तब मिर्जा़ अबुल-फज़्ल फारस की राजधानी, तेहरान के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक में प्रोफेसर बने। यह कहानी दर्शाती है कि किस प्रकार, जब वे उस शहर में थे तब उन्होंने, अपने व्यापक अध्ययन से प्राप्त किये गये अन्य किसी भी ज्ञान से परे एक ज्ञान प्राप्त किया था--जो कि इस युग के ईश्वरीय अवतार बहाउल्लाह के प्रकटीकरण के बारे में था।
एक दोपहर को, मिर्जा़ अबुल-फज़्ल और उनके कुछ साथी गधों पर सवार होकर ग्रामीण क्षेत्र के भ्रमण पर निकले। शहर से बाहर निकलते समय रास्ते में एक गधे की नाल खो गयी, इसलिये वह टोली सहायता के लिये पास ही की एक लुहार की दुकान पर पहुँची। जब लुहार ने--जिसे बहुत कम औपचारिक शिक्षा प्राप्त थी--मिर्जा़ अबुल-फज़्ल की लम्बी दाढ़ी और चौड़ी पगड़ी देखी, जो कि उनके बृहत ज्ञान के चिन्ह थे, तो उसने पूछा कि क्या वह ज्ञानी पुरूष उसके एक ऐसे प्रश्न का उत्तर देने को राज़ी हैं जिसने काफी समय से उसे उलझन में डाल रखा था। मिर्जा़ अबुल-फज़्ल ने लुहार को प्रश्न पूछने की इजाज़त दे दी। इस पर लुहार ने एक प्राचीन लिखित धार्मिक मान्यता के संदर्भ में पूछा, कि ‘‘क्या यह सच है कि बारिश की हर बूँद के साथ स्वर्ग से एक देवदूत नीचे आता है, और यह देवदूत ही बारिश को ज़मीन पर लाता है? ‘‘हाँ, यह सच है,’’ मिर्जा़ अबुल-फज़्ल ने उत्तर दिया--क्योंकि एक लम्बे समय से उस क्षेत्र के लोगों में यह मान्यता था कि ऐसा ही है। कुछ देर बाद, लुहार ने एक और प्रश्न पूछने की इजाज़त माँगी, जो मिर्जा़ अबुल-फज़्ल ने उसे दे दी। ‘‘क्या यह सच है,’’ लुहार ने एक बार फिर पूछा, ‘‘कि यदि किसी घर में कुत्ता पल रहा हो, तो उस घर में कोई देवदूत नहीं आयेगा?’’ मिर्जा़ अबुल-फज़्ल ने फिर से हाँ में उत्तर दिया, क्योंकि यह भी उन लोगों की एक मान्यता थी जो लिखित परम्पराओं का अनुसरण करते थे। इस पर लुहार बोला, ‘‘फिर तो उस घर में कोई बारिश नहीं गिरनी चाहिये जहाँ एक कुत्ता पल रहा हो।’’ मिर्जा़ अबुल-फज़्ल के पास कोई उत्तर नहीं था। वे शर्मिंदा और क्रोधित होकर वहाँ से चले गये, क्योंकि उन्हें एक लुहार ने चकरा दिया था जिसके पास कोई औपचारिक शिक्षा नहीं थी!
मिर्जा़ अबुल-फज़्ल को अपने साथियों से पता चला कि वह लुहार एक बहाई था। अब, हुआ यूँ कि उनका और इस लुहार का एक परिचित व्यक्ति था--एक स्थानीय कपड़े का फुटकर व्यापारी--बाज़ार में जिसकी एक दुकान थी जहाँ मिर्जा़ अबुल-फज़्ल कभी कभी जाया करते थे। जब इस व्यापारी ने, जो कि बहाई था, लुहार वाली घटना सुनी, तो उसने मिर्जा़ अबुल-फज़्ल को कुछ चर्चाओं में भाग लेने के लिये आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया, और एक बैठक की व्यवस्था की गयी। इस बैठक में मिर्जा़ अबुल-फज़्ल ने कुछ प्रश्न रखे और कई आपत्तियाँ उठायीं। प्रत्येक का उत्तर इतने सरल शब्दों में और इतने विवेकपूर्ण ढंग से दिया गया कि मिर्जा़ अबुल-फज़्ल हैरान रह गये, क्योंकि उनका सोचना था कि वे बड़ी आसानी से उस बहाई की मान्यताओं को गलत ठहरा सकते थे।
कई महीनों तक मिर्जा़ अबुल-फज़्ल ने कई भिन्न भिन्न बहाईयों से मिलना जारी रखा, जिनमें से कुछ काफी विद्वान थे। अंत में, बहाउल्लाह के अनुयायियों द्वारा दिये गये प्रमाणों को हमेशा ही नकार नहीं पाने के कारण उन्होंने सच्चे मन से अपना हृदय ईश्वर की ओर उन्मुख किया और सत्य दिखाये जाने की भीख माँगी। जल्द ही वे बहाउल्लाह के उद्देश्य के सत्य से अभिभूत हो गये, और लगभग एक वर्ष तक प्रतिवाद करने के बाद, वे एक पक्के और दृढ़ अनुयायी एवं प्रभुधर्म के एक उत्साही शिक्षक बन गये।
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