Thursday, November 15, 2012

गुड़गाँव की गतिविधियाँ

पिछले महीने दिल्ली भ्रमण पर गये गुड़गाँव के तेहत्तर युवाओं का एक दल
गुड़गाँव में पिछले कुछ दिनों से संस्थान प्रक्रिया ने गति पकड़ी है। इसका एकमात्र कारण है गुड़गाँव के बारह युवाओं के एक दल का बहाई उपासना मन्दिर जाना और वहाँ रह कर एक सप्ताह का प्रशिक्षण पाना। इन युवाओं ने रूही पुस्तक एक, तीन और पाँच का प्रशिक्षण पाया और वापस आकर पूरे जोश के साथ विभिन्न गतिविधियों से वे जुड़ गये। प्राप्त सूचना के अनुसार गुड़गाँव में फिलहाल नौ प्रार्थना सभाओं का आयोजन किया जा रहा है, जिनमें लगभग साठ प्रतिभागी नियमित रूप से भाग ले रहे हैं, किशोरों के लिये भी नौ कक्षायें चलाई जा रही हैं, जिनके प्रतिभागियों की संख्या बहत्तर है। गुड़गाँव के लक्ष्मण विहार, सूरत नगर तथा अन्य स्थानों पर बच्चों के लिये नियमित रूप से छह कक्षाओं का आयोजन इन्हीं प्रशिक्षित युवाओं द्वारा किया जा रहा है जिनमें लगभग साठ बच्चे भाग लेते हैं। रूही कक्षाओं का संचालन किरण सिन्हा और रेशमी आद्या करती है। पुतुल आद्या रूही कक्षाओं के संचालन के साथ-साथ बाल कक्षाओं और प्रार्थना सभाओं का आयोजन नियमित रूप से अपने घर पर कर रही हैं। किशोरों की कक्षाओं के अनुप्रेरकों को प्रशिक्षित करने का दायित्व भूपेश मंडल ने सम्हाला है। इस प्रकार संस्थान प्रक्रिया विकास के पथ पर आगे बढ़ रही है, लेकिन इस विकास में सबसे बड़ा योगदान वहाँ के युवक- युवतियों का है जो अन्य युवाओं को गतिविधियों से जोड़ने के उद्देश्य से हाल ही बहाई उपासना मंदिर, इन्डिया गेट और कृषि विज्ञान संग्रहालय की सैर पर गये। इन युवाओं की संख्या तेहत्तर थी, जिन्होंने पूरे दिन की सैर की और बहाई गतिविधियों की उपयोगिता के बारे में जाना-समझा। इन युवाओं की प्रेरणा है रग्घु और राकेश जो अपनी पढ़ाई और काम के साथ-साथ इन गतिविधियों के प्रति समर्पित है। गुड़गाँव की गतिविधियों का निरीक्षण बहुत नज़दीक से सहायक मंडल सदस्या भावना चैरसिया करती रहती हैं, जो अक्सर गुड़गाँव की बाल-कक्षाओं और युवा सशक्तिकरण कार्यक्रमों के बीच होती हैं। हाल ही स्थानीय आध्यात्मिक सभा को भेजे गये एक ई-मेल में भावना चैरसिया ने लिखा है कि गुड़गाँव में युवाओं के उत्साह को देखकर प्रसन्नता होती है। इनके उत्साह को बनाये रखने का दायित्व स्थानीय आध्यात्मिक सभा का है। सभा के सदस्यों को खासतौर से सलाह देते हुए उन्होंने लिखा है कि उन्हें वैसे मित्रों के घरों में जाकर प्रभुधर्म के बारे में बातें करनी चाहिये जो बहाई उत्सवों के अवसर पर आते रहे हैं, या फिर जिनके लड़के-लड़कियाँ, युवा अथवा बाल कक्षाओं में शामिल हो रहे हैं। सम्भव हो तो ऐसे अभिभावकों की एक अलग बैठक का आयोजन किया जाये।

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