प्रो. नादिर सैदी द्वारा
बहाउल्ला का दर्शन प्रेम और एकता का दर्शन है। अपने उपदेशों में उन्होंने सबसे ज्यादा बल अस्तित्व की एकता पर दिया है। इसका मतलब यह है कि इस जगत में जिन चीजों का भी अस्तित्व है, उनमें एक तरह की एकता और समानता है। उन्होंने इस एकता के तीन बुनियादी तत्वों की चर्चा की। इनमें से पहला है दैवी तत्व की पूर्ण एकता।
इस दैवी तत्व या सत्य को समझ पाना मनुष्य की क्षमता से परे है। लेकिन मनुष्य सहित सभी प्राणियों में वही दैवी तत्व वर्तमान है और उसी से एकाकार हो जाना हमारे अस्तित्व का परम लक्ष्य है। दूसरे शब्दों में मनुष्य का अस्तित्व इस दैवी तत्व का ही प्रतिरूप है। बहाइयों के लिए सभी प्राणी दैवी सत्ता के ही संकेत और प्रमाण हैं।
दूसरे स्तर की दैवी एकता का संबंध दैवी अवतारों से है। बहाउल्ला कहते हैं कि सभी दैवी दूत और पैगंबर, मसलन कृष्ण, बुद्ध, मूसा और मोहम्मद साहब असल में एक ही हैं और उनकी आंतरिक विशेषताएं भी एक जैसी ही हैं। उन्होंने कहा कि सभी धर्म का सत्य और लक्ष्य एक ही है, समस्त दैवी अवतार और पैगंबर एक ही होते हैं। लेकिन मानव सभ्यता के विकास के ऐतिहासिक और सामाजिक जरूरतों के मुताबिक वे अपने आप को विभिन्न रूपों में प्रगट करते हैं।
बहाउल्ला ने कहा कि ईश्वर के दूत आध्यात्मिक चिकित्सक होते हैं जो अपने रोगियों को उनके रोग विशेष के लिए तरह-तरह की दवाएं बतलाते हैं। सभी दवाएं मनुष्यता की भलाई के लिए एक जैसी ही जरूरी हैं। लेकिन मानव सभ्यता में तो अलग-अलग, नए-नए तरह के रोग पैदा होते रहते हैं। हर काल में हर समाज की समस्याएं एक जैसी नहीं होतीं। इसलिए रोग में बदलाव के साथ ही दवाओं को भी अवश्य बदलना चाहिए।
इसी वजह से बहाउल्ला ने दैवी अवतारों की एकता के बारे में बात करते हुए उसकी प्रगतिशीलता पर भी जोर दिया है। पैगंबरों की प्रगतिशीलता का मतलब है देशकाल की जरूरतों के अनुसार उनके निर्देशों में बदलाव। इस बात को समझाने के लिए बहाउल्ला ने सूर्य और क्षितिज के रूपक का सहारा लिया है। जिस तरह अलग-अलग क्षितिज से उदित होने के बावजूद सूर्य तो एक ही है, उसी तरह विभिन्न दैवी अवतारों की सचाई भी एक है।
बहाउल्ला कहते हैं कि प्रभु ईसा और महात्मा बुद्ध के बीच का अंतर उनके मनुष्य रूप में उपस्थिति में है, मूलभूत तत्व या सत् में नहीं। वे अलग-अलग ऋतु या देश या भौगोलिक क्षेत्र के अलग-अलग दिखने वाले क्षितिज के समान हैं, जिससे होकर एक ही दैवी प्रकाश निकलता है और मनुष्य के हृदय को आलोकित करता है।
इन दो स्तरों पर दैवी एकता की बात करने के बाद बहाउल्ला ने मानवीय एकता की भी बात की है। मानवीय एकता एक आध्यात्मिक दर्शन और तात्विक सचाई है। उसका आशय यह है कि सभी मनुष्य अपने होने की अनिवार्यता में उस परम शक्ति से ही जुड़े हुए हैं। मानवीय आत्मा दैवी गुणों का ही एक आईना है। इस तरह पूरी मानवता अपने आप में ही दैवी एकता का आईना है। इसलिए हर मनुष्य का और हर मानव समाज का यह कर्तव्य है कि वह अपने अस्तित्व के इस आईने को साफ-सुथरा रखे। इसी आईने में दैवी एकता का अक्स व्यक्तिगत, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और बौद्घिक स्तरों पर प्रतिबिंबित होने दे।
मानवता के लिए आज सबसे बड़ी आध्यात्मिक चुनौती है अपने नैतिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संस्थानों को बनाते समय और उनकी विविधताओं की हिफाजत करते हुए उनमें छिपी पवित्र मानवीय एकता को उजागर करना। इस अनेकता में एकता की अपने आप में एक ऐतिहासिक प्रक्रिया रही है।
आधुनिक समय में मानवीय एकता का प्रगटीकरण बहुत सीमित ढंग से हुआ है। हमने राष्ट्रीय एकता को ही एक तरह से मानवीय एकता मान लिया है। बहाउल्ला ने हमें सिखाया है कि मनुष्यता का ऐतिहासिक लक्ष्य होना चाहिए कि वह मानवीय एकता को वैश्विक स्तर पर प्राप्त कर उसे उस बड़े सांस्कृतिक रूपाकार में परिणत करे।
12 नवंबर को बहाउल्लाह का जन्मदिन है।
Friday, October 16, 2009
ईश्वर के दूत आध्यात्मिक चिकित्सक होते हैं
Posted by bhartiya-bahai at 2:44 AM
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