“...the arrival of Bahá'u'lláh and His companions in the Najibiyyih Garden outside the city of 213 Baghdad, subse-quently referred to by the Bahá'ís as the Garden of Ridvan. This event, which took place thirty-one days after Naw-Ruz, in April 1863, signalized the commencement of the period during which Bahá'u'lláh declared His Mission to His companions. In a Tablet, He refers to His Declaration as "the Day of supreme felicity" and He describes the Gar-den of Ridvan as "the Spot from which He shed upon the whole of creation the splendors of His Name, the All-Merciful".
Bahá'u'lláh spent twelve days in this Garden prior to de-parting for Istanbul, the place to which He had been ban-ished. The Declaration of Bahá'u'lláh is celebrated annu-ally by the twelve-day Ridvan Festival, described by Shoghi Effendi as "the holiest and most significant of all Bahá'í festivals"
In the Kitab-i-Aqdas Bahá'u'lláh Writes:
“Verily, all created things were immersed in the sea of pu-rification when, on that first day of Ridvan, We shed upon the whole of creation the splendors of Our most excellent Names and Our most exalted Attributes
(Baha'u'llah, The Kitab-i-Aqdas, p. 47)
“... I do not feel it to be in keeping with the spirit of the Cause to impose any limitations upon the freedom of the be-lievers to choose those of any race, 10 nationality or temperament, who best combine the essential qualification for membership of administrative institutions. They should disregard personalities and concentrate their attention on the qualities and requirements of office, without prejudice, passion or partially. The Assembly should be representa-tive of the choicest and most varied and capable elements in every Bahá'í community."
“To be able to make a wise choice at the election time, it is necessary for him to be in close and continued contact with all of his fellow -- believers, to keep in touch with local activities, be they teaching, administrative or otherwise, and to fully and whole-heartedly participate in the affairs of the local as well as national committees and Assemblies in his country. It is only in this way that a believer can develop a true social consciousness, and acquire a true sense of responsibility in matters affecting the interests of the Cause. Bahá'í community life thus makes it a duty for every loyal land faithful believer to become an intelligent, well -- informed and responsible elector, and also gives him the opportunity of raising himself to such a station. And since the practice of nomination hinders the development of such qualities in the believers, and in addition leads to corruption and partisanship, it has to be entirely discarded in a Bahá'í elections."
“On the election day the friends must whole-heartedly participate in the elections, in unity and amity, turning their hearts to God, detached from all things but Him, seeking His guidance and supplicating His aid and bounty”
"... the elector... is called upon to vote for none but those whom prayer and reflection have inspired him to uphold. Moreover, the practice of nomination, so detrimental to the atmosphere of a silent and prayerful election, is viewed with mistrust, inasmuch as it gives the right,... to deny that God-given right of every elector to vote only in favor of those who he is conscientiously convinced are the most worthy candidates”
(Compilations, Lights of Guidance)
Wednesday, October 28, 2009
Sanctity of Baha'i Elections
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Friday, October 23, 2009
बहाई धर्म की केन्द्रीय विभूतिया
1819-1850 (ईश्वरी अवतार) बहाउल्लाह के अग्रदूत,
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बहाई होने का आश्य क्या है?
''तुम इस प्रकार व्यवहार करो कि दूसरी आत्माओं के मध्य तुम सूर्य की भाति दैदीप्यमान और विशिष्ट बनो। अगर तुम में से कोई एक नगर में प्रवेश करे, तो उसे अपने निष्कपट हृदय से विश्वसनीयता एवं प्रेम, ईमानदारी एवं निष्ठा, सत्यवादिता तथा संसार के सभी लोगों के प्रति प्रेममय दया द्वारा आकर्षण का एक केंद्र बनना चाहिए, ताकि उस नगर के लोग पुकार कर कहें: ''यह आदमी निःसंदेह एक बहाई है, क्योंकि इसका शिष्टाचार, इसका व्यवहार, इसका आचरण, इसके आचार, इसकी प्रकृति बहाइयों के मानदण्डों को प्रतिबिम्बित करते हैं।'' जब तक तुम ऐसे पद को प्राप्त न करा लो, तुम्हें ईश्वर के विधान तथा उसके आदेश के प्रति विश्वस्त नहीं कहा जा सकता है।''
(अब्दुल-बहा की रचनाओं से संकलन से अंश)
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Friday, October 16, 2009
ईश्वर के दूत आध्यात्मिक चिकित्सक होते हैं
प्रो. नादिर सैदी द्वारा
बहाउल्ला का दर्शन प्रेम और एकता का दर्शन है। अपने उपदेशों में उन्होंने सबसे ज्यादा बल अस्तित्व की एकता पर दिया है। इसका मतलब यह है कि इस जगत में जिन चीजों का भी अस्तित्व है, उनमें एक तरह की एकता और समानता है। उन्होंने इस एकता के तीन बुनियादी तत्वों की चर्चा की। इनमें से पहला है दैवी तत्व की पूर्ण एकता।
इस दैवी तत्व या सत्य को समझ पाना मनुष्य की क्षमता से परे है। लेकिन मनुष्य सहित सभी प्राणियों में वही दैवी तत्व वर्तमान है और उसी से एकाकार हो जाना हमारे अस्तित्व का परम लक्ष्य है। दूसरे शब्दों में मनुष्य का अस्तित्व इस दैवी तत्व का ही प्रतिरूप है। बहाइयों के लिए सभी प्राणी दैवी सत्ता के ही संकेत और प्रमाण हैं।
दूसरे स्तर की दैवी एकता का संबंध दैवी अवतारों से है। बहाउल्ला कहते हैं कि सभी दैवी दूत और पैगंबर, मसलन कृष्ण, बुद्ध, मूसा और मोहम्मद साहब असल में एक ही हैं और उनकी आंतरिक विशेषताएं भी एक जैसी ही हैं। उन्होंने कहा कि सभी धर्म का सत्य और लक्ष्य एक ही है, समस्त दैवी अवतार और पैगंबर एक ही होते हैं। लेकिन मानव सभ्यता के विकास के ऐतिहासिक और सामाजिक जरूरतों के मुताबिक वे अपने आप को विभिन्न रूपों में प्रगट करते हैं।
बहाउल्ला ने कहा कि ईश्वर के दूत आध्यात्मिक चिकित्सक होते हैं जो अपने रोगियों को उनके रोग विशेष के लिए तरह-तरह की दवाएं बतलाते हैं। सभी दवाएं मनुष्यता की भलाई के लिए एक जैसी ही जरूरी हैं। लेकिन मानव सभ्यता में तो अलग-अलग, नए-नए तरह के रोग पैदा होते रहते हैं। हर काल में हर समाज की समस्याएं एक जैसी नहीं होतीं। इसलिए रोग में बदलाव के साथ ही दवाओं को भी अवश्य बदलना चाहिए।
इसी वजह से बहाउल्ला ने दैवी अवतारों की एकता के बारे में बात करते हुए उसकी प्रगतिशीलता पर भी जोर दिया है। पैगंबरों की प्रगतिशीलता का मतलब है देशकाल की जरूरतों के अनुसार उनके निर्देशों में बदलाव। इस बात को समझाने के लिए बहाउल्ला ने सूर्य और क्षितिज के रूपक का सहारा लिया है। जिस तरह अलग-अलग क्षितिज से उदित होने के बावजूद सूर्य तो एक ही है, उसी तरह विभिन्न दैवी अवतारों की सचाई भी एक है।
बहाउल्ला कहते हैं कि प्रभु ईसा और महात्मा बुद्ध के बीच का अंतर उनके मनुष्य रूप में उपस्थिति में है, मूलभूत तत्व या सत् में नहीं। वे अलग-अलग ऋतु या देश या भौगोलिक क्षेत्र के अलग-अलग दिखने वाले क्षितिज के समान हैं, जिससे होकर एक ही दैवी प्रकाश निकलता है और मनुष्य के हृदय को आलोकित करता है।
इन दो स्तरों पर दैवी एकता की बात करने के बाद बहाउल्ला ने मानवीय एकता की भी बात की है। मानवीय एकता एक आध्यात्मिक दर्शन और तात्विक सचाई है। उसका आशय यह है कि सभी मनुष्य अपने होने की अनिवार्यता में उस परम शक्ति से ही जुड़े हुए हैं। मानवीय आत्मा दैवी गुणों का ही एक आईना है। इस तरह पूरी मानवता अपने आप में ही दैवी एकता का आईना है। इसलिए हर मनुष्य का और हर मानव समाज का यह कर्तव्य है कि वह अपने अस्तित्व के इस आईने को साफ-सुथरा रखे। इसी आईने में दैवी एकता का अक्स व्यक्तिगत, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और बौद्घिक स्तरों पर प्रतिबिंबित होने दे।
मानवता के लिए आज सबसे बड़ी आध्यात्मिक चुनौती है अपने नैतिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संस्थानों को बनाते समय और उनकी विविधताओं की हिफाजत करते हुए उनमें छिपी पवित्र मानवीय एकता को उजागर करना। इस अनेकता में एकता की अपने आप में एक ऐतिहासिक प्रक्रिया रही है।
आधुनिक समय में मानवीय एकता का प्रगटीकरण बहुत सीमित ढंग से हुआ है। हमने राष्ट्रीय एकता को ही एक तरह से मानवीय एकता मान लिया है। बहाउल्ला ने हमें सिखाया है कि मनुष्यता का ऐतिहासिक लक्ष्य होना चाहिए कि वह मानवीय एकता को वैश्विक स्तर पर प्राप्त कर उसे उस बड़े सांस्कृतिक रूपाकार में परिणत करे।
12 नवंबर को बहाउल्लाह का जन्मदिन है।
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Wednesday, October 14, 2009
Beautiful Baha'i Bhajans and Songs
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Bahai_Bhakti_Geet/Aaya_Dharm_Bahai_Hai.MP3 | |
Bahai_Bhakti_Geet/Bahai_Dharam_Se_Tum_ Zindgi_Sajate_Chalo.MP3 | |
Bahai_Bhakti_Geet/Bolo_Re_Pyare_Bahaullah_Ka_Naam.MP3 | |
Bahai_Bhakti_Geet/Ek_Sath_Sab_Mil_Kar_Gao.MP3 | |
Bahai_Bhakti_Geet/Hei_Vishwa_Richayata_Bahaullah.MP3 | |
Bahai_Bhakti_Geet/Mere_Desh_Ke_Vasi_Sun_Lo.MP3 | |
Bahai_Bhakti_Geet/Mujhe_Jab_Se_Bahai_Dharam_Mila.MP3 | |
Bahai_Bhakti_Geet/Sansar_Ke_Kone_Kone_Mein.MP3 | |
Bahai_Bhakti_Geet/Ujde_Hua_Chaman_ Mein_Fir_Se_Bahar_Lao.MP3 | |
Track 9 | |
Bhajna_Amrit/Hei_Jag_Ke_Palanhar_Prabhu.MP3 | |
Bhajna_Amrit/Ishwar_Ke_Siway_Koi_Aur_Hai.MP3 | |
Bhajna_Amrit/Jag_Utha_Mein_Teri_Sharan_Mein.MP3 | |
Track 2 | |
Bhajna_Amrit/Mera_Pratham_Pramarsh_Yeh_Hei.MP3 | |
Bhajna_Amrit/Mere_Hridya_Ko_Nirmal_Kar.MP3 | |
Track 5 | |
DivyaVasantAaGayaHai.mp3 | |
Ek_Hai_Hum/Bhed_Bhula_Do.MP3 | |
Ek_Hai_Hum/Chahe_Ho_Yeh_Zamin.MP3 | |
Ek_Hai_Hum/Ham_Ek_Rahenge.MP3 | |
Ek_Hai_Hum/Ham_Ek_Rahenge_Karoke.MP3 | |
Ek_Hai_Hum/Jab_Jab_Hoti.MP3 | |
Ek_Hai_Hum/Jai_Ho_Bahaullah.MP3 | |
Ek_Hai_Hum/Jhoom_Jhoom_Jamane_Mein.MP3 | |
Ek_Hai_Hum/Jhoom_Jhoom_Karoke.MP3 | |
Ek_Hai_Hum/Panchi_Hawain_Ghatain.MP3 | |
Ek_Hai_Hum/Yeh_Sansar.MP3 | |
Ham_Bahai_Hua_Hain/Ab_Ho_Chuka_Sarwera.MP3 | |
Ham_Bahai_Hua_Hain/Baha_Baha_Bhaj_Le.MP3 | |
Ham_Bahai_Hua_Hain/Jago_Bharat_Ki_Santan.MP3 | |
Ham_Bahai_Hua_Hain/Mere_Bhag_Khule _Mera_Maan_Badha.MP3 | |
Ham_Bahai_Hua_Hain/Phansi_Hai_Musibat_ Mein_Sari_Khudai.MP3 | |
Ham_Bahai_Hua_Hain/Sab_Ko_Muhabat_Se_Samjhana.MP3 | |
Ham_Bahai_Hua_Hain/Sansar_Ke_Kone_Kone_Mein.MP3 | |
Ham_Bahai_Hua_Hain/Yeh_Sab_Zamin_Hai_and_ Dil_Ka_Mandir_Pada_Hai_Suna.MP3 | |
Ish_Vandana/Ek_Kar_De_Hridya_Apne_Sewakon_Ke.MP3 | |
Ish_Vandana/Hei_Atman_Ke_Putar_Mera_Pratham.MP3 | |
Ish_Vandana/Hei_Ishwar_Meri_Atman_Ko.MP3 | |
Ish_Vandana/Hei_Mera_Ishwar_Apne_ Sewakon_Ke_Dilon_Ko.MP3 | |
Ish_Vandana/Mangal_Mai_Hai_Wah.MP3 | |
Ish_Vandana/Tera_Hridya_Mera_Niwas_Sathan_Hai.MP3 | |
Ish_Vandana/Tera_Nam_Hi_Mera_Aragya_Hai.MP3 | |
Ish_Vandana/Tun_Mera_Deepak_Hai.MP3 | |
Track 4 | |
Prabhu_Smaran/Hei_Parmeshwar.MP3 | |
Prabhu_Smaran/Hei_Parmeshwar_Meri_Atma.MP3 | |
Prabhu_Smaran/Hei_Prabhu_Ham_Agyani.MP3 | |
Prabhu_Smaran/Hei_Tun_Dayalu_Swami.MP3 | |
Prabhu_Smaran/Jiski_Nikakta_Meri_Kamna.MP3 | |
Prabhu_Smaran/Tun_Hi_Hai.MP3 | |
Track 10 | |
Prabhu_Stuti/DivyaVasantAaGayaHai.mp3 | |
Prabhu_Stuti/Hei_Ishwar_In_Balkon_Ko.MP3 | |
Prabhu_Stuti/Hei_Mere_Parmeshwar.MP3 | |
Prabhu_Stuti/Hei_Mere_Pratapshali_Permeshwar.MP3 | |
Prabhu_Stuti/Hei_Prabhu_Ham_Nirbal_Hain.MP3 | |
Prabhu_Stuti/Ishwar_Ke_Naam_Se.MP3 | |
Prabhu_Stuti/Tera_Na_Hi_Meri_Nirogta_Hai.MP3 | |
Prabhu_Stuti/Ya_Baha_Ya_Baha.MP3 | |
Punjabi/Rab_Di_Bani/Aao_Aao_Bahai_Mandir_Aao.MP3 | |
Punjabi/Rab_Di_Bani/Dhan_Dhan_Hai_Oh_Jagah.MP3 | |
Punjabi/Rab_Di_Bani/Hei_Mere_Prabhu_Hei_Mere_Prabhu.MP3 | |
Punjabi/Rab_Di_Bani/Jap_Le_Jap_Le_ Pyare_Naam_Baha_Da_Tun_Japla.MP3 | |
Punjabi/Rab_Di_Bani/Kasi_Chali_Hawa.MP3 | |
Punjabi/Rab_Di_Bani/Teri_Sharan_Wich_Jaag_Mein....MP3 | |
Punjabi/Rab_Di_Bani/Tun_Mera_Deepak_Hai_and_ Iss_Yug_wich_Hi_Aaye_Ne_Pyare_Baha.MP3 | |
Temple_Dedication/1_Persian_Prayer_Abdu-Baha.MP3 | |
Temple_Dedication/2_From_Budhist_Scriptures.MP3 | |
Temple_Dedication/3_Extract_from_Bible.MP3 | |
Temple_Dedication/4_Verses_from_Bible.MP3 | |
Temple_Dedication/5_Quran_Surah_16.MP3 | |
Temple_Dedication/6_O_my_God_unite_the_hearts.MP3 | |
Temple_Dedication/7_Atman_to_Navsafurti_do.MP3 | |
Temple_Dedication/8_Persian_Prayer.MP3 | |
Temple_Dedication/9_Ek_Hi_Ped_ke_tum_ho_phal.MP3 |
Posted by bhartiya-bahai at 2:56 AM 2 comments
Monday, October 12, 2009
बहाई भजन (भक्ति गीत) डाऊनलोड करें
MP3 में बहाई भजन (भक्ति गीत) यहाँ से डाऊनलोड कर सकते हैं
भजनअमृत और विश्ववन्दना
http://www.4shared.com/dir/8035287/ab525c3/Bahai_Prayers.html#
Posted by bhartiya-bahai at 10:15 AM 0 comments
कौन थे भगवान बहाउल्लाह?
बहाउल्लाह का जन्म तेहरान (ईरान) में 12 नवंबर 1817 में हुआ था। वे कभी स्कूल नहीं गए पर उनके पास ज्ञान का अथाह भंडार था। उन्होंने जो शिक्षा हासिल की वह घर से ही मिली। बहाउल्लाह जब 22 साल के थे तब उनके पिता का निधन हो गया था, वे मंत्री थे। इसके बाद प्रधानमंत्री ने बहाउल्लाह को उनके पिता की जगह मंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा पर उन्होंने नहीं माना। इसके बाद उन्होंने बहाई धर्म की स्थापना की। इस बीच उन्होंने निराकार ईश्वर का सिद्धांत देकर सभी धर्मो को जोड़ने का प्रयास किया। उन्होंने कहा नाम अलग-अलग हो सकते हैं पर ईश्वर तो एक ही है।
ने 100 से ज्यादा पुस्तकें और हजारों प्रार्थनाएं लिखी थीं। बहाई धर्म की शुरुआत करीब 150 वर्ष पहले ईरान से हुई थी। इसके बाद अमेरिका, ईरान, इंग्लैंड और भारत में काफी संख्या में अनुयायी हैं। पूरी दुनिया में बहाई धर्मावलंबी हैं, जो बहाउल्लाह को ईश्वरीय अवतार मानते हैं।
Posted by bhartiya-bahai at 8:36 AM 0 comments
कमल मन्दीर (बहाई उपासना मन्दिर)
दिल्ली के दिल यानी नेहरू प्लेस में बसा लोटस टेंपल, अपने आप में अनूठा है। यह हर तरह के पर्यटकों को अपनी तरफ खींचता है। माना जाता है कि प्रतिदिन लोटस टेंपल में करीब आठ से दस हजार पर्यटक आते हैं। यहाँ का निर्मल वातावरण प्रार्थना और ध्यान के लिए सहायक है। यहाँ पर न तो कोई मूर्ति है, न ही कोई कर्म-कांड होते हैं बल्कि यहाँ पर विभिन्न धर्मों के पवित्र लेख पढ़े जाते हैं। भारत के लोगों के लिए कमल का फूल पवित्रता तथा शांति का प्रतीक है और ईश्वर के अवतार का संकेत चिह्न भी है। इस फूल का कीचड़ में रहने के बावजूद पवित्र तथा स्वच्छ रह कर खिलना, सिखाता है कि धार्मिक प्रतिस्पर्धा तथा भौतिक पूर्वाग्रहों के अंदर रह कर भी वे इन सबसे कैसे अनासक्त हो पाएँ।
बहाई उपासना मंदिर उन मंदिरों में से है जो गौरव शांति एवं उत्कृष्ठ वातावरण को ज्योतिर्मय करता है, जो किसी भी श्रद्धालु को आध्यात्मिक रूप से प्रोत्साहित करने के लिए अति आवश्यक है। उपासना मंदिर मीडिया प्रचार प्रसार और श्रव्य माध्यमों में आगंतुकों को सूचनाएं प्रदान करता है। मंदिर का उद्घाटन २४ दिसंबर १९८६ को हुआ लेकिन आम जनता के लिए यह मंदिर १ जनवरी १९८७ को खोला गया। तब से इस मंदिर को लोटस टेंपल के नाम से ही पुकारा जाता है। मंदिर में पर्यटकों को आर्किषत करने के लिए विस्तृत घास के मैदान, सफेद विशाल भवन, ऊंचे गुंबद वाला प्रार्थनागार और प्रतिमाओं के बिना मंदिर से आकर्षित होकर हजारों लोग यहां मात्र दर्शक की भांति नहीं बल्कि प्रार्थना एवं ध्यान करने तथा निर्धारित समय पर होने वाली प्रार्थना सभा में भाग लेने भी आते हैं। यह विशेष प्रार्थना हर घंटे पर पांच मिनट के लिए आयोजित की जाती है। गर्मियों में सूचना केंद्र सुबह ९:३० बजे खुलता है, जो शाम को ६:३० पर बंद होता है। जबकि र्सिदयों में इसका समय सुबह दस से पांच होता है। इतना ही नहीं लोग उपासना मंदिर के पुस्तकालय में बैठ कर धर्म की किताबें भी पढ़ते हैं और उनपर रिसर्च भी करने आते हैं।
Posted by bhartiya-bahai at 6:36 AM 0 comments