युगावतार बहाउल्लाह की 200वीं जयंती मुंबई के छोटे से बहाई समाज के
लिए एकता बंधन और मजबूत करने का अवसर बनकर आई है। सम्पूर्ण मानव जाति की
एकता के हिमायती इस समुदाय पर विमल मिश्र का कम्युनिटी कनेक्ट।
बहाई धर्म की स्थापना महात्मा बहाउल्लाह (1817-1892) ने ईरान में की थी। वक्त के साथ सिद्धांतों को लेकर बहाई धर्म का इस्लाम के साथ टकराव बढ़ता गया और बहाई धर्मानुयायियों को उत्पीड़न से बचने के लिए ईरान से निकलना पड़ा। बहाई धर्मानुयायी बहाउल्लाह को भगवान और कृष्ण, ईसा, मोहम्मद, बुद्ध, जरथुस्त्र, मूसा, आदि अवतारों की कड़ी मानते हैं। जिन 18 पवित्रात्माओं ने महात्मा बॉब (पैगंबर बहाउल्लाह के अग्रदूत) को पहचाना और स्वीकार किया था उनमें एक भारतीय भी थे।
भारत में पहले बहाई का आगमन 1844 में माना जाता है। बताते हैं, दुनिया भर के 180 देशों में फैले पचास लाख बहाइयों में से लगभग बीस लाख बहाई भारत में भारत के हर प्रदेश में 10000 से भी अधिक जगहों पर रहते हैं, जो ईरान से बाहर किसी देश में बहाइयों की सबसे बड़ी तादाद है। मुंबई में बहाई 1914 से रह रहे हैं और उनकी संख्या मात्र पांच सौ बताई जाती है। ये बहाई मुंबई के दक्षिण मुंबई व अंधेरी और ठाणे, कल्याण, पनवेल, नवी मुंबई और मालेगांव जैसी जगहों पर रहते हैं। ये लोग सभी तरह के धंधों और पेशों में और प्रतिष्ठित पदों पर हैं।
‘यूनिटी फीस्ट’ की एकता उनकी मुखमुद्रा पर लिखी है। सामूहिक प्रार्थना, सांस्कृतिक कार्यक्रम और सहभोज। कोर्ट चैंबर्स, न्यू मरीन लाइंस स्थित लोकल स्प्रिच्चुअल असेंबली में हर उपलब्ध अवसर पर जुटने वाले चेहरे। इनमें तकरीबन हर एक-दूसरे से अच्छी तरह परिचित है। दरअसल, यह मेल-जोल उनकी जरूरत भी है और ताकत भी।
बहाई समुदाय में आपसी मेल-जोल के लिए नियम तय हैं। मसलन, नौ से ज्यादा बहाई कहीं हैं तो लोकल स्प्रिचुअल असेंबली में मिलेंगे जरूर। ‘बहाई मत में सृष्टा से सीधे संवाद के लिए सामूहिक प्रार्थना का सबसे अधिक महत्व है। आशय यह है कि जब विभिन्न पृष्ठभूमि के लोग एक साथ बैठकर प्रार्थना करेंगे तो यह प्रेम और एकता का बंधन बनेगी’, लोकल असेंबली की सेक्रेटरी नरगिस गौड़ बताती हैं। ये आध्यात्मिक बैठकें सामुदायिक केंद्रों, या घरों में भी हो सकती हैं। उत्सवों के लिए भी इस धर्म में अवसरों की कमी नहीं। युगावतार बहाउल्लाह और संत बॉब की जयंती, पैगंबरी का वर्ष, वर्ष के नौ और 12 पवित्र दिन और 19 दिन का भोज। बहाइयों का कैलेंडर 19 महीने का होता है जिसमें हर महीने में 19 दिन होते हैं। कैलेंडर की शुरुआत 21 मार्च से होती है। 21 अप्रैल उनके प्रशासकीय वर्ष का शुरुआती दिन है। अपने प्रतिनिधियों का चुनाव वे गोपनीय मतदान के माध्यम से करते हैं। नैशनल बहाई स्प्रिचुअल असेंबली भारत के बहाइयों की सर्वोच्च संस्था है 17 प्रादेशिक तथा लगभग 600 लोकल स्प्रिच्चुअल असेंबलियां जिसके मार्गदर्शन काम करती हैं। 22 अक्टूबर को बहाउल्लाह की 200वीं जयंती मनाई जाने वाली है।
•बहाई एकेश्वरवादी धर्म है जिसका मानना है कि सृष्टि के निर्माण में एक ही ईश्वर का योगदान है, सभी मुख्य धर्म एक ही ईश्वर से उत्पन्न हैं और सभी मनुष्य एक समान हैं। भगवान बहाउल्लाह के सन्देश की मुख्य अवधारणा यह है कि सम्पूर्ण मानव एक जाति है। उद्देश्य है सम्पूर्ण मानव जाति की एकता की प्रक्रिया में योगदान देकर सदैव प्रगति करने वाली सभ्यता को आगे बढ़ाना और वैश्विक समाज में बदल जाना।
•बहाई धर्म में धर्म गुरु, पुजारी, मौलवी या पादरी वर्ग नहीं होता है। वे जाति, धर्म, भाषा, रंग, वर्ग, आदि किसी भी पूर्वाग्रह को नहीं मानते। बहाई मंदिर सभी धर्मों और संप्रदायों के लोगों के लिए खुले होते हैं, जिनमें उन्हें प्रार्थना करने और धार्मिक मंत्रों का उच्चारण की अनुमति तो प्राप्त होती है, पर उपदेश देने या धार्मिक कर्मकांड की नहीं। दिल्ली का लोटस टेंपल वास्तुकला का बेहतरीन नमूना और भारत में बहाई समुदाय का प्रमुखतम धर्म-स्थल है।
•विश्व शान्ति एवं विश्व एकता के साथ सभी के लिए न्याय, स्त्री–पुरुष की समानता, अनिवार्य शिक्षा, विज्ञान व धर्म का सामंजस्य और गरीबी व धन की अति का समाधान बहाई धर्म के मुख्य सिद्धांतों में से हैं। भगवान बहाउल्लाह द्वारा 1873 के आस-पास लिखी गई लिखी गई पुस्तक "किताब-ए-अकदस" में इनका विवरण मिलता है।
•बहाइयों की जीवन शैली में सेवा अनिवार्य घटक है। बहाई ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट के पाठ्यक्रम व्यक्तिगत आध्यात्मिक सशक्तिकरण के अनुकूल होते हैं। स्वाध्याय से अर्जित ज्ञान को व्यक्तिगत व सामूहिक रूपांतरण में लगाने पर बल दिया जाता है।
•बहाई बच्चों को समाज का सर्वाधिक मूल्यवान संसाधन मानते हैं। वर्तमान में बच्चों के लिए 1000 से अधिक बहाई नैतिक व आध्यात्मिक कक्षाओं का आयोजन देश के विभिन्न हिस्सों में किया जा रहा है जिनका उद्देश्य है बच्चों में सत्यवादिता, विश्वसनीयता, ईमानदारी और न्याय को विकसित करके एक मजबूत नैतिक ढांचा तैयार करना ताकि भौतिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से श्रेष्ठता हासिल की जा सके। किशोरों में बढ़ती ऊर्जा प्रवाह को सही दिशा देने के लिए भी ग्रुप्स बनाए गए हैं। विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों को एक समान मंच पर बढ़ने का और इन शिक्षाओं को अपने व्यकिगत और सामाजिक स्तरों पर लागू करने का मौका देने के लिए स्टडी सर्किल हैं। युवाओं, वयस्कों और महिलाओं के लिए भी कार्यक्रम हैं।
•बहाई धर्म में धर्म गुरु, पुजारी, मौलवी या पादरी वर्ग नहीं होता है। वे जाति, धर्म, भाषा, रंग, वर्ग, आदि किसी भी पूर्वाग्रह को नहीं मानते। बहाई मंदिर सभी धर्मों और संप्रदायों के लोगों के लिए खुले होते हैं, जिनमें उन्हें प्रार्थना करने और धार्मिक मंत्रों का उच्चारण की अनुमति तो प्राप्त होती है, पर उपदेश देने या धार्मिक कर्मकांड की नहीं। दिल्ली का लोटस टेंपल वास्तुकला का बेहतरीन नमूना और भारत में बहाई समुदाय का प्रमुखतम धर्म-स्थल है।
•विश्व शान्ति एवं विश्व एकता के साथ सभी के लिए न्याय, स्त्री–पुरुष की समानता, अनिवार्य शिक्षा, विज्ञान व धर्म का सामंजस्य और गरीबी व धन की अति का समाधान बहाई धर्म के मुख्य सिद्धांतों में से हैं। भगवान बहाउल्लाह द्वारा 1873 के आस-पास लिखी गई लिखी गई पुस्तक "किताब-ए-अकदस" में इनका विवरण मिलता है।
•बहाइयों की जीवन शैली में सेवा अनिवार्य घटक है। बहाई ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट के पाठ्यक्रम व्यक्तिगत आध्यात्मिक सशक्तिकरण के अनुकूल होते हैं। स्वाध्याय से अर्जित ज्ञान को व्यक्तिगत व सामूहिक रूपांतरण में लगाने पर बल दिया जाता है।
•बहाई बच्चों को समाज का सर्वाधिक मूल्यवान संसाधन मानते हैं। वर्तमान में बच्चों के लिए 1000 से अधिक बहाई नैतिक व आध्यात्मिक कक्षाओं का आयोजन देश के विभिन्न हिस्सों में किया जा रहा है जिनका उद्देश्य है बच्चों में सत्यवादिता, विश्वसनीयता, ईमानदारी और न्याय को विकसित करके एक मजबूत नैतिक ढांचा तैयार करना ताकि भौतिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से श्रेष्ठता हासिल की जा सके। किशोरों में बढ़ती ऊर्जा प्रवाह को सही दिशा देने के लिए भी ग्रुप्स बनाए गए हैं। विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों को एक समान मंच पर बढ़ने का और इन शिक्षाओं को अपने व्यकिगत और सामाजिक स्तरों पर लागू करने का मौका देने के लिए स्टडी सर्किल हैं। युवाओं, वयस्कों और महिलाओं के लिए भी कार्यक्रम हैं।
मुंबई में बहाई
बहाई धर्म की स्थापना महात्मा बहाउल्लाह (1817-1892) ने ईरान में की थी। वक्त के साथ सिद्धांतों को लेकर बहाई धर्म का इस्लाम के साथ टकराव बढ़ता गया और बहाई धर्मानुयायियों को उत्पीड़न से बचने के लिए ईरान से निकलना पड़ा। बहाई धर्मानुयायी बहाउल्लाह को भगवान और कृष्ण, ईसा, मोहम्मद, बुद्ध, जरथुस्त्र, मूसा, आदि अवतारों की कड़ी मानते हैं। जिन 18 पवित्रात्माओं ने महात्मा बॉब (पैगंबर बहाउल्लाह के अग्रदूत) को पहचाना और स्वीकार किया था उनमें एक भारतीय भी थे।
भारत में पहले बहाई का आगमन 1844 में माना जाता है। बताते हैं, दुनिया भर के 180 देशों में फैले पचास लाख बहाइयों में से लगभग बीस लाख बहाई भारत में भारत के हर प्रदेश में 10000 से भी अधिक जगहों पर रहते हैं, जो ईरान से बाहर किसी देश में बहाइयों की सबसे बड़ी तादाद है। मुंबई में बहाई 1914 से रह रहे हैं और उनकी संख्या मात्र पांच सौ बताई जाती है। ये बहाई मुंबई के दक्षिण मुंबई व अंधेरी और ठाणे, कल्याण, पनवेल, नवी मुंबई और मालेगांव जैसी जगहों पर रहते हैं। ये लोग सभी तरह के धंधों और पेशों में और प्रतिष्ठित पदों पर हैं।
‘यूनिटी फीस्ट’ की एकता उनकी मुखमुद्रा पर लिखी है। सामूहिक प्रार्थना, सांस्कृतिक कार्यक्रम और सहभोज। कोर्ट चैंबर्स, न्यू मरीन लाइंस स्थित लोकल स्प्रिच्चुअल असेंबली में हर उपलब्ध अवसर पर जुटने वाले चेहरे। इनमें तकरीबन हर एक-दूसरे से अच्छी तरह परिचित है। दरअसल, यह मेल-जोल उनकी जरूरत भी है और ताकत भी।
बहाई समुदाय में आपसी मेल-जोल के लिए नियम तय हैं। मसलन, नौ से ज्यादा बहाई कहीं हैं तो लोकल स्प्रिचुअल असेंबली में मिलेंगे जरूर। ‘बहाई मत में सृष्टा से सीधे संवाद के लिए सामूहिक प्रार्थना का सबसे अधिक महत्व है। आशय यह है कि जब विभिन्न पृष्ठभूमि के लोग एक साथ बैठकर प्रार्थना करेंगे तो यह प्रेम और एकता का बंधन बनेगी’, लोकल असेंबली की सेक्रेटरी नरगिस गौड़ बताती हैं। ये आध्यात्मिक बैठकें सामुदायिक केंद्रों, या घरों में भी हो सकती हैं। उत्सवों के लिए भी इस धर्म में अवसरों की कमी नहीं। युगावतार बहाउल्लाह और संत बॉब की जयंती, पैगंबरी का वर्ष, वर्ष के नौ और 12 पवित्र दिन और 19 दिन का भोज। बहाइयों का कैलेंडर 19 महीने का होता है जिसमें हर महीने में 19 दिन होते हैं। कैलेंडर की शुरुआत 21 मार्च से होती है। 21 अप्रैल उनके प्रशासकीय वर्ष का शुरुआती दिन है। अपने प्रतिनिधियों का चुनाव वे गोपनीय मतदान के माध्यम से करते हैं। नैशनल बहाई स्प्रिचुअल असेंबली भारत के बहाइयों की सर्वोच्च संस्था है 17 प्रादेशिक तथा लगभग 600 लोकल स्प्रिच्चुअल असेंबलियां जिसके मार्गदर्शन काम करती हैं। 22 अक्टूबर को बहाउल्लाह की 200वीं जयंती मनाई जाने वाली है।