Wednesday, April 18, 2012

बहाई उपवास

अन्य प्रकटित धर्मों की तरह, बहाई धर्म में भी उपवास पर बहुत बल दिया जाता है, जो आत्मा के अनुशासन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। बहाउल्लाह द्वारा हमें हर वर्ष 19 दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक उपवास करने के लिए आदेश दिया गया है। यह अवधि बहाई कैलेण्डर के 18वें और 19वें महीने के बीच में आती है जो 2 से 20 मार्च तक की होती है। इसके तुरन्त बाद 21 मार्च को बहाई नववर्ष का आगमन होता है। इस कारण से उपवास को एक नये वर्ष की गतिविधियों के लिए आध्यात्मिक तैयारी और उत्थान के समय के रूप में भी देखा जाता है। गर्भवती महिलाओं, 70 वर्ष की आयु से अधिक उम्र के अनुयायियों, रोगियों, यात्रियों, अत्यधिक शारीरिक श्रम करने वाले और 15 वर्ष की आयु से कम के बच्चों को उपवास करने से मुक्त रखा गया है। यह समय विशेष रूप से प्रार्थना, ध्यान और आध्यात्मिक पुनरुत्थान का समय है, जिसके दौरान व्यक्ति अपने आंतरिक जीवन में जरूरी सुधार लाने और उसकी आत्मा में व्याप्त आध्यात्मिक शक्ति को पुनर्जीवित और ताजा करने के लिए तीव्र प्रयत्न करता है। इस कारण से उपवास का महत्व और उद्देश्य मूल रूप से आध्यात्मिक है। उपवास मात्र एक प्रतीक है, जो भौतिक इच्छाओं और स्वार्थ से दूर रहने का संकेत देता है।
उपवास मनुष्य के पुनरुत्थान का कारण है, इससे हृदय कोमल बन जाता है और मनुष्य में आध्यात्मिकता की वृद्धि होती है। इसका निर्माण इस वास्तविकता से होता है कि मनुष्य के विचार ईश्वर को याद करने में केन्द्रित होते हैं और इस पुनर्जीवन और प्रेरणा के बाद उन्नति संभव होती है। उपवास दो प्रकार के हैं-भौतिक और आध्यात्मिक। भौतिक उपवास खान-पान से दूर रहना है यानि शारीरिक भूख से दूर रहते हैं। परन्तु आध्यात्मिक अथवा वास्तविक उपवास यह है कि मनुष्य व्यर्थ कल्पनाओं से और अमानवीय गुणों से दूर रहते हैं। इसलिए भौतिक उपवास आध्यात्मिक उपवास का एक प्रतीक है जैसे कि ‘‘हे दिव्य विधाता! विरक्त हूँ जिस तरह मैं दैहिक कामनाओं, अन्न और जल से, मेरा हृदय भी शुद्ध और पावन कर दे वैसे ही, अपने अतिरिक्त अन्य सब के प्रेम से; भ्रष्ट इच्छाओं और शैतानी प्रवृत्तियों से मेरी आत्मा को बचा, इसकी रक्षा कर, ताकि मेरी चेतना पवित्रता की सांस के साथ संलाप कर सके और तेरे उल्लेख के सिवा अन्य सबका परित्याग कर सके।’’

0 comments: