करेल में आयोजित 32वें विटंर स्कूल के प्रतिभागी |
केरल में 23 से 26 जनवरी 2011 तक 32वें वार्षिक बहाई विंटर स्कूल का आयोजन किया गया। राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभा के तीन पदाधिकारियों-उपाध्यक्ष श्रीमती ज़ीना सोराबजी, सचिव सुश्री नाज़नीन रौहानी और कोषाध्यक्ष श्री पी. के. प्रेमराजन की उपस्थिति के कारण यह विंटर स्कूल और भी महत्वपूर्ण बन गया। इनके अलावा राष्ट्रीय सांख्यिकी अधिकारी श्री टी. प्रभाकरण, भूतपूर्व सलाहकार श्री बी. अफशिन, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से आये मित्रों के अलावा सभी 6 सहायक मण्डल सदस्य भी इस विंटर स्कूल में उपस्थित हुए। विंटर स्कूल का आरम्भ यूनिटी फीस्ट से हुआ जिसमें भजन और भक्तिपरक नृत्य प्रस्तुत किये गये। श्री अफशिन द्वारा दीप प्रज्ज्वलित किया गया साथ ही उन्होंने 'बहाई होने के नाते हमारे जीवन का उद्देश्य' पर अपना वक्तव्य दिया।
विश्व न्याय मन्दिर के रिज़वान 2010 के संदेश पर सहायक मण्डल सदस्यों के सहयोग से एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। मित्रों को छोटे-छोटे समूहों में विभक्त कर उन्हें संदेश के निश्चित भाग का अध्ययन करने और उस पर अपनी प्राप्त समझ से प्रस्तुति तैयार करने को कहा गया। प्रस्तुति से यह स्पष्ट हो गया कि सभी समूहों द्वारा बहुत गहनता से अध्ययन किया गया। कुछ समूहों ने विषय पर आधारित लघुनाटिका और गीत प्रस्तुत किये। श्री टी. प्रभाकरण ने पावर प्वायंट की मदद से ''अब्दुल-बहा का जीवन और उद्देश्य'' के विषय में विस्तार से बताया जिसको देखने के उपरान्त मित्रों को परमप्रिय मास्टर के स्थान के बारे में वास्तविक ज्ञान प्राप्त हुआ। श्रीमती ज़ीना सोराबजी ने पावर प्वायंट प्रस्तुति द्वारा विवाह पर बहाई सिध्दांत और राजनीति में भागीदारी न करना'' जैसे विषयों पर उपस्थित मित्रों को बताया। उन्होंने अनुयायियों के अनेक प्रश्नों के उत्तार दिये।
एक अन्य सत्र में उन्होंने हुकूकुल्लाह (ईश्वर का अधिकार) के विषय में भी बताया। सुश्री नाज़नीन रौहानी ने 'किशोर आध्यात्मिक सशक्तिकरण कार्यक्रम और बच्चों की बहाई कक्षा' की आवश्यकता और उन्हें दृढ़ करने के उद्देश्य पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया और ''सेवा का आध्यात्मिक पहलू'' विषय पर बहुत गहनता से अपनी प्रस्तुति दी। श्री पी. के. प्रेमराजन ने बहाई कोष के बारे में बताया तथा एक अन्य सत्र में सर्वोच्च संस्था के 28 दिसम्बर 2010 के संदेश के विशेष संदर्भ के साथ स्थानीय आध्यात्मिक सभाओं के विकास की अवधारणा और उसके स्थान के विषय में बताया। डॉ. के. एम. रामानन्दन ने पावर प्वाइंट के माध्यम से भारत में जनगणना की प्रणाली को समझाया और बताया कि यह बहुत जरूरी है और हमें यह निश्चित करना चाहिए कि धर्म के कॉलम में बहाई ही लिखा जाये। यह विंटर स्कूल हर मामले में पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर था।
प्रत्येक समुदायसमूह में अनुयायियों ने परिषद के लक्ष्य के अनुसार धनराशि एकत्रित की थी। समापन समारोह के दौरान पड़ोसी राज्यों से आये कुछ मित्रों ने विंटर स्कूल पर अपने अनुभव एक-दूसरे के साथ बांटे। वे सभी यह देखकर खुश थे कि विंटर स्कूल का आयोजन बहुत ही व्यवस्थित ढंग से किया गया था और उन्हें भी बहुत कुछ सीखने को मिले। विंटर स्कूल में शामिल सभी मित्रगण अगली पाँच वर्षीय योजना के लक्ष्य को पूरा करने के लिए बहुत सी यादें, आध्यात्मिक दृष्टिकोण, खुशियाँ और उत्साह लेकर अपने-अपने घरों को वापस लौटे। सगुजरात में बिलिमोरा में 5 से 7 जनवरी 2011 को विंटर स्कूल का आयोजन किया गया, जिसमें 175 मित्रों ने भाग लिया। इस विंटर स्कूल में युवाओं को सार्वजनिक समारोह में बात करने के लिए प्रोत्साहित किया गया और बच्चों के लिए एक विशेष कार्यक्रम रखा गया। एक ओर जहां युवाओं ने अपनी बातों द्वारा अपनी प्रतिभा को साबित किया वहीं दूसरी ओर बच्चों ने विशेष कार्यक्रम का आनन्द लिया।
श्री जितेन्द्र बागुल ने ''सेवा और मूल गतिविधियों'' के विषय में बताते हुए कहा कि मूल गति- विधियाँ मानवजाति की सेवा कर रही हैं वे एक बहाई होने की विशेषता बता रही हैं। सेवा को प्रभावी और सफल बनाने के लिए प्रेम और समर्पण अतिआवश्यक है। श्रीमती ज़ीना सोराबजी ने बहाई उपासना मन्दिर को आत्मनिर्भर बनाने पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि बहाई उपासना मंदिर के लिए जमीन खरीदने और उसके निर्माण कार्य के दौरान अनेक चमत्कारिक घटनायें हुईं, जिनको उन्होंने स्वयं देखा था। मन्दिर की भूमि खरीदने के लिए कई दशकों तक कुछ मित्रों ने समर्पण और धैर्य के साथ कड़ी मेहनत की। इस समय मन्दिर की देखरेख के लिए प्रतिवर्ष दो करोड़ रुपये व्यय होते हैं, जिसका केवल 30 लाख रुपये भारत के मित्रों से योगदान प्राप्त होता है शेष राशि विश्व न्याय मन्दिर द्वारा भेजी जाती है
अब राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभा ने यह वचन दिया है कि संपूर्ण व्यय भारत के मित्रों द्वारा वहन किया जायेगा। श्रीमती सोराबजी के वक्तव्य के बाद राज्य परिषद के कोषाध्यक्ष ने उपस्थित मित्रों से मन्दिर कोष के लिए 5 लाख 94 हजार रुपये एकत्रित करने का आह्वान किया। उपस्थित मित्रों ने ''बहाई चुनाव के सिध्दांत'' पर विश्व न्याय मन्दिर के 25 मार्च 2007 के संदेश का छोटे-छोटे समूहों में अध्ययन किया। उन्होंने जाना कि बहाई चुनाव में प्रतिभागी होना प्रत्येक वयस्क बहाई का आध्यात्मिक दायित्व है। उन्हें ऐसे व्यक्ति को अपना मतदान देना चाहिए जो सेवा कार्यों में सक्रिय हो और पूर्ण रूप से अनुभवी, योग्य, निष्ठावान, प्रशिक्षित और समर्पित हो।
हुकूकुल्लाह के उपन्यासी श्री नन्द खेमानी ने हुकूकुल्लाह पर अपने वक्तव्य में कहा कि हुकूकुल्लाह एक दायित्व है और राशि का भुगतान बहाउल्लाह द्वारा निर्धारित किया गया है। जबकि अन्य मामलों में योगदान देना हमारे स्वयं पर निर्भर है कि हम कितना दान देंगे। हमारी बचत में 81 प्रतिशत हमारे लिए है और 19 प्रतिशत हम उसे वापस कर देते हैं वह 19 प्रतिशत हुकूकुल्लाह है। श्री चेतन पारिख ने ''पवित्र और नैतिक जीवन'' के विषय में बताते हुए कहा कि हमारा जीवन इस प्रकार का होना चाहिए कि हमारे शब्दों और व्यवहार को देखकर पता लगे की यह बहाई है। हमारे जीवन में सत्यवादिता, मित्रता, एक शुध्द हृदय और प्रार्थना यह चार गुण अवश्य होने चाहिए। विंटर स्कूल के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये गये, जिसमें बच्चों द्वारा गीत, बहाई प्रार्थनाओं पर आधारित नृत्य, सांस्कृतिक नृत्य और लघु नाटिका आदि प्रस्तुत किये गये।
विश्व न्याय मन्दिर के रिज़वान 2010 के संदेश पर सहायक मण्डल सदस्यों के सहयोग से एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। मित्रों को छोटे-छोटे समूहों में विभक्त कर उन्हें संदेश के निश्चित भाग का अध्ययन करने और उस पर अपनी प्राप्त समझ से प्रस्तुति तैयार करने को कहा गया। प्रस्तुति से यह स्पष्ट हो गया कि सभी समूहों द्वारा बहुत गहनता से अध्ययन किया गया। कुछ समूहों ने विषय पर आधारित लघुनाटिका और गीत प्रस्तुत किये। श्री टी. प्रभाकरण ने पावर प्वायंट की मदद से ''अब्दुल-बहा का जीवन और उद्देश्य'' के विषय में विस्तार से बताया जिसको देखने के उपरान्त मित्रों को परमप्रिय मास्टर के स्थान के बारे में वास्तविक ज्ञान प्राप्त हुआ। श्रीमती ज़ीना सोराबजी ने पावर प्वायंट प्रस्तुति द्वारा विवाह पर बहाई सिध्दांत और राजनीति में भागीदारी न करना'' जैसे विषयों पर उपस्थित मित्रों को बताया। उन्होंने अनुयायियों के अनेक प्रश्नों के उत्तार दिये।
एक अन्य सत्र में उन्होंने हुकूकुल्लाह (ईश्वर का अधिकार) के विषय में भी बताया। सुश्री नाज़नीन रौहानी ने 'किशोर आध्यात्मिक सशक्तिकरण कार्यक्रम और बच्चों की बहाई कक्षा' की आवश्यकता और उन्हें दृढ़ करने के उद्देश्य पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया और ''सेवा का आध्यात्मिक पहलू'' विषय पर बहुत गहनता से अपनी प्रस्तुति दी। श्री पी. के. प्रेमराजन ने बहाई कोष के बारे में बताया तथा एक अन्य सत्र में सर्वोच्च संस्था के 28 दिसम्बर 2010 के संदेश के विशेष संदर्भ के साथ स्थानीय आध्यात्मिक सभाओं के विकास की अवधारणा और उसके स्थान के विषय में बताया। डॉ. के. एम. रामानन्दन ने पावर प्वाइंट के माध्यम से भारत में जनगणना की प्रणाली को समझाया और बताया कि यह बहुत जरूरी है और हमें यह निश्चित करना चाहिए कि धर्म के कॉलम में बहाई ही लिखा जाये। यह विंटर स्कूल हर मामले में पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर था।
प्रत्येक समुदायसमूह में अनुयायियों ने परिषद के लक्ष्य के अनुसार धनराशि एकत्रित की थी। समापन समारोह के दौरान पड़ोसी राज्यों से आये कुछ मित्रों ने विंटर स्कूल पर अपने अनुभव एक-दूसरे के साथ बांटे। वे सभी यह देखकर खुश थे कि विंटर स्कूल का आयोजन बहुत ही व्यवस्थित ढंग से किया गया था और उन्हें भी बहुत कुछ सीखने को मिले। विंटर स्कूल में शामिल सभी मित्रगण अगली पाँच वर्षीय योजना के लक्ष्य को पूरा करने के लिए बहुत सी यादें, आध्यात्मिक दृष्टिकोण, खुशियाँ और उत्साह लेकर अपने-अपने घरों को वापस लौटे। सगुजरात में बिलिमोरा में 5 से 7 जनवरी 2011 को विंटर स्कूल का आयोजन किया गया, जिसमें 175 मित्रों ने भाग लिया। इस विंटर स्कूल में युवाओं को सार्वजनिक समारोह में बात करने के लिए प्रोत्साहित किया गया और बच्चों के लिए एक विशेष कार्यक्रम रखा गया। एक ओर जहां युवाओं ने अपनी बातों द्वारा अपनी प्रतिभा को साबित किया वहीं दूसरी ओर बच्चों ने विशेष कार्यक्रम का आनन्द लिया।
श्री जितेन्द्र बागुल ने ''सेवा और मूल गतिविधियों'' के विषय में बताते हुए कहा कि मूल गति- विधियाँ मानवजाति की सेवा कर रही हैं वे एक बहाई होने की विशेषता बता रही हैं। सेवा को प्रभावी और सफल बनाने के लिए प्रेम और समर्पण अतिआवश्यक है। श्रीमती ज़ीना सोराबजी ने बहाई उपासना मन्दिर को आत्मनिर्भर बनाने पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि बहाई उपासना मंदिर के लिए जमीन खरीदने और उसके निर्माण कार्य के दौरान अनेक चमत्कारिक घटनायें हुईं, जिनको उन्होंने स्वयं देखा था। मन्दिर की भूमि खरीदने के लिए कई दशकों तक कुछ मित्रों ने समर्पण और धैर्य के साथ कड़ी मेहनत की। इस समय मन्दिर की देखरेख के लिए प्रतिवर्ष दो करोड़ रुपये व्यय होते हैं, जिसका केवल 30 लाख रुपये भारत के मित्रों से योगदान प्राप्त होता है शेष राशि विश्व न्याय मन्दिर द्वारा भेजी जाती है
अब राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभा ने यह वचन दिया है कि संपूर्ण व्यय भारत के मित्रों द्वारा वहन किया जायेगा। श्रीमती सोराबजी के वक्तव्य के बाद राज्य परिषद के कोषाध्यक्ष ने उपस्थित मित्रों से मन्दिर कोष के लिए 5 लाख 94 हजार रुपये एकत्रित करने का आह्वान किया। उपस्थित मित्रों ने ''बहाई चुनाव के सिध्दांत'' पर विश्व न्याय मन्दिर के 25 मार्च 2007 के संदेश का छोटे-छोटे समूहों में अध्ययन किया। उन्होंने जाना कि बहाई चुनाव में प्रतिभागी होना प्रत्येक वयस्क बहाई का आध्यात्मिक दायित्व है। उन्हें ऐसे व्यक्ति को अपना मतदान देना चाहिए जो सेवा कार्यों में सक्रिय हो और पूर्ण रूप से अनुभवी, योग्य, निष्ठावान, प्रशिक्षित और समर्पित हो।
हुकूकुल्लाह के उपन्यासी श्री नन्द खेमानी ने हुकूकुल्लाह पर अपने वक्तव्य में कहा कि हुकूकुल्लाह एक दायित्व है और राशि का भुगतान बहाउल्लाह द्वारा निर्धारित किया गया है। जबकि अन्य मामलों में योगदान देना हमारे स्वयं पर निर्भर है कि हम कितना दान देंगे। हमारी बचत में 81 प्रतिशत हमारे लिए है और 19 प्रतिशत हम उसे वापस कर देते हैं वह 19 प्रतिशत हुकूकुल्लाह है। श्री चेतन पारिख ने ''पवित्र और नैतिक जीवन'' के विषय में बताते हुए कहा कि हमारा जीवन इस प्रकार का होना चाहिए कि हमारे शब्दों और व्यवहार को देखकर पता लगे की यह बहाई है। हमारे जीवन में सत्यवादिता, मित्रता, एक शुध्द हृदय और प्रार्थना यह चार गुण अवश्य होने चाहिए। विंटर स्कूल के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये गये, जिसमें बच्चों द्वारा गीत, बहाई प्रार्थनाओं पर आधारित नृत्य, सांस्कृतिक नृत्य और लघु नाटिका आदि प्रस्तुत किये गये।
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