विश्व भर में आज भारत के युवाओं की आबादी सबसे अधिक है। यह एक ऐसी सच्चाई है जो देश के भविष्य के लिये असीम सम्भावनाओं और सम्भावित चुनौतियों के द्वार खोलती है। इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में भारत में प्रभुधर्म के बाहरी मामलों से सम्बन्धित कार्यालय और भारतीय लोक प्रशासन के संयुक्त प्रयास से इस विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया।
समाज की दशा और दिशा के निर्धारण में आज नेतृत्व करने वाले युवा और निर्णय लेने वाले लोगों की जरूरत है-इस विषय का विश्लेषण करते हुये सेमिनार में विशेष रूप से समुदाय-निर्माण के कार्यों में युवाओं की भूमिका पर विचार किया गया। युवाओं पर मीडिया का प्रभाव और मौसम के परिवर्तन से सम्बन्धित मुद्दों को सुलझाने में युवाओं के योगदान पर चर्चा लम्बी चली।
भारत सरकार के युवा मामले और खेल मंत्रालय की अतिरिक्त सचिव किरन सोनी गुप्ता ने अपने उद्घाटन-सम्बोधन में कहा कि युवा ही हैं जो विचारों की एक नई लहर ला सकते हैं। नेहरु युवा केन्द्र संस्थान के महानिदेशक मेजर जनरल दिलावर सिंह ने कहा कि हम जब युवाओं के योगदान पर विचार कर रहे हैं तो हर प्रकार की स्थिति पर भी विचार करना चाहिये। दिल्ली की एक बहाई युवा पूजा तिवारी ने समुदाय-निर्माण के कार्यों में युवाओं की भूमिका पर बल दिया और कहा कि आज के युवा एक बेहतर दुनिया की बातें सोचते हैं और सामाजिक विकास में हाथ बंटाना चाहते हैं। दूरदर्शन समाचार के वरिष्ठ परामर्शी सम्पादक केजी. सुरेश ने युवाओं पर मीडिया के प्रभाव की चर्चा करते हुए कहा कि एक मीडियाकर्मी होने के नाते वह महसूस करते हैं कि इन मुद्दों पर गहराई से विचार क्यों नहीं किया जाता। आज ज़रूरत है कि मीडिया से सम्बन्धित मुद्दों पर पूरी तरह से विचार किया जाये।
मौसम-परिवर्तन के क्षेत्र में अनुसंधान और विश्लेषण की असीम संभावनाओं पर अपने-अपने विचार व्यक्त करते हुये तीन युवा प्रतिभागियों ने कहा कि मौसम के मिजाज में हो रहे बदलाव से उत्पन्न हो रही समस्याओं के समाधान पर गम्भीरता से विचार किया जाना चाहिये। लखनऊ स्थित सिटी मांटेसरी स्कूल में युवा सशक्तिकरण और क्षमता-निर्माण प्रभाग की प्रधान फरीदा वाहिदी ने कहा कि इस दिशा में आगे बढ़ने के लिये सबसे पहले तो तकनीकी ज्ञान की सीख की ज़रूरत है उसके बाद क्षमता-निर्माण की, इच्छा-शक्ति और फिर संकल्प-शक्ति की आवश्यकता है।
• दिल्ली स्थित राष्ट्रीय बहाई कार्यालय में ऑफिस ऑफ पब्लिक अफेयर्स ऑफ द बहाईज़ ऑफ इंडिया द्वारा एक अन्तर्धर्म बैठक का आयोजन 9 फरवरी, 2016 को किया गया। इस बैठक का उद्देश्य विभिन्न धर्मों के लोगों को एक मंच प्रदान करना था, जहाँ धर्मों के प्रतिनिधि अर्थपूर्ण सम्वाद कर सकें और सामाजिक मुद्दों पर निरन्तर ऐसे सम्वादों को जारी रखा जा सके। साथ ही, एक ऐसी प्रक्रिया को भी शुरू किया जाना इस बैठक के उद्देश्य में शामिल था कि किस प्रकार सामाजिक प्रगति के विभिन्न पहलुओं तथा एक बेहतर समाज के निर्माण में धर्म की रचनात्मक भूमिका की खोज़ की जा सके जिससे लोगों के बीच परस्पर प्रेम और एकता समान मूल्यों पर स्थापित हो।
ऑफिस ऑफ पब्लिक अफेयर्स ऑफ द बहाईज़ ऑफ इंडिया के शत्रुहन जीवनानी ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि धर्म के नाम पर झगड़े-फसाद ने धर्म को बदनाम कर दिया है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि धर्म का बहुत बड़ा योगदान शांति और भाईचारे को स्थापित करने में रहा है और प्रगतिशील रूप से धर्म ने लोगों को आचारसंहिता दी और सभ्यता के विकास की प्रक्रिया में विभिन्न धर्मों ने बहुत बड़ी भूमिका निबाही है। बैठक के आरम्भ में तो संदेहास्पद स्वर का आभास हुआ, लेकिन जैसे-जैसे अर्थपूर्ण संवाद बढ़ता गया यह स्पष्ट होता चला गया कि इस मंच ने वह माहौल देने का वायदा किया है जो दूर-दूर रह रहे लोगों को परस्पर प्रेम और मित्रता के धागे में पिरो सकता है। सभी धर्मों के लोगों का मानना था कि विचारों की भिन्नता हो सकती है लेकिन गंतव्य तो सबका एक ही है - दुनिया में शांति और सद्भाव की स्थापना।
समाज की दशा और दिशा के निर्धारण में आज नेतृत्व करने वाले युवा और निर्णय लेने वाले लोगों की जरूरत है-इस विषय का विश्लेषण करते हुये सेमिनार में विशेष रूप से समुदाय-निर्माण के कार्यों में युवाओं की भूमिका पर विचार किया गया। युवाओं पर मीडिया का प्रभाव और मौसम के परिवर्तन से सम्बन्धित मुद्दों को सुलझाने में युवाओं के योगदान पर चर्चा लम्बी चली।
भारत सरकार के युवा मामले और खेल मंत्रालय की अतिरिक्त सचिव किरन सोनी गुप्ता ने अपने उद्घाटन-सम्बोधन में कहा कि युवा ही हैं जो विचारों की एक नई लहर ला सकते हैं। नेहरु युवा केन्द्र संस्थान के महानिदेशक मेजर जनरल दिलावर सिंह ने कहा कि हम जब युवाओं के योगदान पर विचार कर रहे हैं तो हर प्रकार की स्थिति पर भी विचार करना चाहिये। दिल्ली की एक बहाई युवा पूजा तिवारी ने समुदाय-निर्माण के कार्यों में युवाओं की भूमिका पर बल दिया और कहा कि आज के युवा एक बेहतर दुनिया की बातें सोचते हैं और सामाजिक विकास में हाथ बंटाना चाहते हैं। दूरदर्शन समाचार के वरिष्ठ परामर्शी सम्पादक केजी. सुरेश ने युवाओं पर मीडिया के प्रभाव की चर्चा करते हुए कहा कि एक मीडियाकर्मी होने के नाते वह महसूस करते हैं कि इन मुद्दों पर गहराई से विचार क्यों नहीं किया जाता। आज ज़रूरत है कि मीडिया से सम्बन्धित मुद्दों पर पूरी तरह से विचार किया जाये।
मौसम-परिवर्तन के क्षेत्र में अनुसंधान और विश्लेषण की असीम संभावनाओं पर अपने-अपने विचार व्यक्त करते हुये तीन युवा प्रतिभागियों ने कहा कि मौसम के मिजाज में हो रहे बदलाव से उत्पन्न हो रही समस्याओं के समाधान पर गम्भीरता से विचार किया जाना चाहिये। लखनऊ स्थित सिटी मांटेसरी स्कूल में युवा सशक्तिकरण और क्षमता-निर्माण प्रभाग की प्रधान फरीदा वाहिदी ने कहा कि इस दिशा में आगे बढ़ने के लिये सबसे पहले तो तकनीकी ज्ञान की सीख की ज़रूरत है उसके बाद क्षमता-निर्माण की, इच्छा-शक्ति और फिर संकल्प-शक्ति की आवश्यकता है।
• दिल्ली स्थित राष्ट्रीय बहाई कार्यालय में ऑफिस ऑफ पब्लिक अफेयर्स ऑफ द बहाईज़ ऑफ इंडिया द्वारा एक अन्तर्धर्म बैठक का आयोजन 9 फरवरी, 2016 को किया गया। इस बैठक का उद्देश्य विभिन्न धर्मों के लोगों को एक मंच प्रदान करना था, जहाँ धर्मों के प्रतिनिधि अर्थपूर्ण सम्वाद कर सकें और सामाजिक मुद्दों पर निरन्तर ऐसे सम्वादों को जारी रखा जा सके। साथ ही, एक ऐसी प्रक्रिया को भी शुरू किया जाना इस बैठक के उद्देश्य में शामिल था कि किस प्रकार सामाजिक प्रगति के विभिन्न पहलुओं तथा एक बेहतर समाज के निर्माण में धर्म की रचनात्मक भूमिका की खोज़ की जा सके जिससे लोगों के बीच परस्पर प्रेम और एकता समान मूल्यों पर स्थापित हो।
ऑफिस ऑफ पब्लिक अफेयर्स ऑफ द बहाईज़ ऑफ इंडिया के शत्रुहन जीवनानी ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि धर्म के नाम पर झगड़े-फसाद ने धर्म को बदनाम कर दिया है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि धर्म का बहुत बड़ा योगदान शांति और भाईचारे को स्थापित करने में रहा है और प्रगतिशील रूप से धर्म ने लोगों को आचारसंहिता दी और सभ्यता के विकास की प्रक्रिया में विभिन्न धर्मों ने बहुत बड़ी भूमिका निबाही है। बैठक के आरम्भ में तो संदेहास्पद स्वर का आभास हुआ, लेकिन जैसे-जैसे अर्थपूर्ण संवाद बढ़ता गया यह स्पष्ट होता चला गया कि इस मंच ने वह माहौल देने का वायदा किया है जो दूर-दूर रह रहे लोगों को परस्पर प्रेम और मित्रता के धागे में पिरो सकता है। सभी धर्मों के लोगों का मानना था कि विचारों की भिन्नता हो सकती है लेकिन गंतव्य तो सबका एक ही है - दुनिया में शांति और सद्भाव की स्थापना।