Friday, January 27, 2012

Indian Postal Department releases a Postal Stamp featuring prominent monuments of Delhi in 1991

Baha'i Lotus Temple is considered as one of the most prominent monument of India

Tuesday, January 24, 2012

मिर्जा़ अबुल-फज़्ल ने किस तरह बहाई धर्म स्वीकार किया

मिर्जा़ अबुल-फज़्ल
शायद आपने मिर्जा़ अबुल-फज़्ल के बारे में पहले सुना होगा, जो आरम्भिक दौर के अनुयायियों में से एक थे तथा बहाउल्लाह के दिनों में बहाई बने थे। मिर्जा़ अबुल-फज़्ल अपनी पैनी अंतदृष्टि, अपने ज्ञान की दौलत, तथा जटिल आध्यात्मिक अवधारणाओं को समझने एवं समझाने की अपनी योग्यता के लिये जाने जाते थे। अपनी युवावस्था में उन्होंने गणित, खगोल षास्त्र, और दर्षनशास्त्र जैसे विषयों का गहरा अध्ययन किया था साथ ही उन्होंने अपनी मातृ भाषा फारसी के साथ-साथ अरबी भाषा में भी महारथ हासिल की थी। जब वे एक युवक ही थे, तब मिर्जा़ अबुल-फज़्ल फारस की राजधानी, तेहरान के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक में प्रोफेसर बने। यह कहानी दर्शाती है कि किस प्रकार, जब वे उस शहर में थे तब उन्होंने, अपने व्यापक अध्ययन से प्राप्त किये गये अन्य किसी भी ज्ञान से परे एक ज्ञान प्राप्त किया था--जो कि इस युग के ईश्वरीय अवतार बहाउल्लाह के प्रकटीकरण के बारे में था।

एक दोपहर को, मिर्जा़ अबुल-फज़्ल और उनके कुछ साथी गधों पर सवार होकर ग्रामीण क्षेत्र के भ्रमण पर निकले। शहर से बाहर निकलते समय रास्ते में एक गधे की नाल खो गयी, इसलिये वह टोली सहायता के लिये पास ही की एक लुहार की दुकान पर पहुँची। जब लुहार ने--जिसे बहुत कम औपचारिक शिक्षा प्राप्त थी--मिर्जा़ अबुल-फज़्ल की लम्बी दाढ़ी और चौड़ी पगड़ी देखी, जो कि उनके बृहत ज्ञान के चिन्ह थे, तो उसने पूछा कि क्या वह ज्ञानी पुरूष उसके एक ऐसे प्रश्न का उत्तर देने को राज़ी हैं जिसने काफी समय से उसे उलझन में डाल रखा था। मिर्जा़ अबुल-फज़्ल ने लुहार को प्रश्न पूछने की इजाज़त दे दी। इस पर लुहार ने एक प्राचीन लिखित धार्मिक मान्यता के संदर्भ में पूछा, कि ‘‘क्या यह सच है कि बारिश की हर बूँद के साथ स्वर्ग से एक देवदूत नीचे आता है, और यह देवदूत ही बारिश को ज़मीन पर लाता है? ‘‘हाँ, यह सच है,’’ मिर्जा़ अबुल-फज़्ल ने उत्तर दिया--क्योंकि एक लम्बे समय से उस क्षेत्र के लोगों में यह मान्यता था कि ऐसा ही है। कुछ देर बाद, लुहार ने एक और प्रश्न पूछने की इजाज़त माँगी, जो मिर्जा़ अबुल-फज़्ल ने उसे दे दी। ‘‘क्या यह सच है,’’ लुहार ने एक बार फिर पूछा, ‘‘कि यदि किसी घर में कुत्ता पल रहा हो, तो उस घर में कोई देवदूत नहीं आयेगा?’’ मिर्जा़ अबुल-फज़्ल ने फिर से हाँ में उत्तर दिया, क्योंकि यह भी उन लोगों की एक मान्यता थी जो लिखित परम्पराओं का अनुसरण करते थे। इस पर लुहार बोला, ‘‘फिर तो उस घर में कोई बारिश नहीं गिरनी चाहिये जहाँ एक कुत्ता पल रहा हो।’’ मिर्जा़ अबुल-फज़्ल के पास कोई उत्तर नहीं था। वे शर्मिंदा और क्रोधित होकर वहाँ से चले गये, क्योंकि उन्हें एक लुहार ने चकरा दिया था जिसके पास कोई औपचारिक शिक्षा नहीं थी!

मिर्जा़ अबुल-फज़्ल को अपने साथियों से पता चला कि वह लुहार एक बहाई था। अब, हुआ यूँ कि उनका और इस लुहार का एक परिचित व्यक्ति था--एक स्थानीय कपड़े का फुटकर व्यापारी--बाज़ार में जिसकी एक दुकान थी जहाँ मिर्जा़ अबुल-फज़्ल कभी कभी जाया करते थे। जब इस व्यापारी ने, जो कि बहाई था, लुहार वाली घटना सुनी, तो उसने मिर्जा़ अबुल-फज़्ल को कुछ चर्चाओं में भाग लेने के लिये आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया, और एक बैठक की व्यवस्था की गयी। इस बैठक में मिर्जा़ अबुल-फज़्ल ने कुछ प्रश्न रखे और कई आपत्तियाँ उठायीं। प्रत्येक का उत्तर इतने सरल शब्दों में और इतने विवेकपूर्ण ढंग से दिया गया कि मिर्जा़ अबुल-फज़्ल हैरान रह गये, क्योंकि उनका सोचना था कि वे बड़ी आसानी से उस बहाई की मान्यताओं को गलत ठहरा सकते थे।

कई महीनों तक मिर्जा़ अबुल-फज़्ल ने कई भिन्न भिन्न बहाईयों से मिलना जारी रखा, जिनमें से कुछ काफी विद्वान थे। अंत में, बहाउल्लाह के अनुयायियों द्वारा दिये गये प्रमाणों को हमेशा ही नकार नहीं पाने के कारण उन्होंने सच्चे मन से अपना हृदय ईश्वर की ओर उन्मुख किया और सत्य दिखाये जाने की भीख माँगी। जल्द ही वे बहाउल्लाह के उद्देश्य के सत्य से अभिभूत हो गये, और लगभग एक वर्ष तक प्रतिवाद करने के बाद, वे एक पक्के और दृढ़ अनुयायी एवं प्रभुधर्म के एक उत्साही शिक्षक बन गये।

हाजी मुहम्मद की कहानी

हाजी मुहम्मद बहाउल्लाह के ज़माने में रहते थे और जैसा कि आप जानते हैं बहाउल्लाह ने इस युग के लिये ईश्वर की शिक्षाएँ प्रकट की हैं। एक व्यापारी के रूप में हाजी मुहम्मद अपने सभी लेन-देन में ईमानदार थे और अपनी विश्वासपात्रता के कारण जाने जाते थे। कुछ समय तक उनका कामकाज उन्हें अक्का लाता रहा। एक दिन जब वे अपने कार्यालय में बैठे थे तब बहाउल्लाह की तरफ से एक अत्यावश्यक कार्य का संदेश लेकर अब्दुल-बहा कमरे में आये। हाजी मुहम्मद को तुरन्त अरब के जेद्दाह शहर के लिये रवाना होना था। उन्होंने अब्दुल-बहा से पूछा कि क्या उन्हें जाने से पहले बहाउल्लाह की उपस्थिति में प्रवेश करने का उपहार प्राप्त हो सकता था। अब्दुल-बहा ने कहा कि इसके लिये समय नहीं था क्योंकि जहाज़ किसी भी क्षण रवाना हो सकता था। आज्ञा का पालन करने की हाजी मुहम्मद की चाह इतनी आदर्श थी कि उनके मन में बहाउल्लाह के आदेश का पालन करने के सिवाय और कोई विचार नहीं था। जैसे ही हाजी मुहम्मद जहाज़ में सवार हुए जहाज़ रवाना हो गया। केवल तब उन्हें खयाल आया कि इस आनन-फानन में उन्हें अब्दुल-बहा से अरब की अपनी यात्रा का उद्देश्य पूछने का विचार ही नहीं आया था। लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी! फिर भी वे चिन्तित नहीं थे। उन्हें पक्का विश्वास था कि जेद्दाह पहुँचते ही ईश्वर उन्हें राह दिखायेंगे। उस दिन समुद्र असाधारण रूप से तुफानी था और समुद्री यात्रा जोखिम भरी थी। सभी को चिन्ता थी कि जहाज़ डूब जायेगा--सभी को यानी हाजी मुहम्मद को छोड़कर अन्य सभी को। वे जानते थे कि वे सुरक्षित रहेंगे और जहाज़ सही सलामत जेद्दाह पहुँच जायेगा क्योंकि बहाउल्लाह द्वारा उन्हें उस शहर में एक कार्य पूरा करने के लिये सौंपा गया था। और सचमुच जहाज़ अपने गन्तव्य स्थान पर सुरक्षित पहुँच गया। जहाज़ से उतरने के बाद हाजी मुहम्मद ने भीड़ में दो लोगों को आपस में फारसी में बात करते हुए सुना। खुद एक फारसी होने के नाते वे उन दो लोगों के पास गये और पाया कि वे भी बहाई थे और बहाउल्लाह से मिलने के लिये अक्का जा रहे थे। उन्हें उनकी आस्था के जुर्म में दस वर्षों तक अन्यायपूर्वक कैद में रखा गया था और वे अभी अभी रिहा किये गये थे। पावन भूमि तक की यह उनकी पहली यात्रा थी और उन्हें सहायता की ज़रूरत थी। हाजी मुहम्मद को अब यह बात स्पष्ट रूप से समझ में आ गयी कि जेद्दाह में उनका उद्देश्य इन दो आत्माओं को अक्का पहुँचने में तथा बहाउल्लाह की उपस्थिति में प्रवेश करने में सहायता करने का था--एक ऐसी ज़िम्मेदारी जो उन्होंने बड़ी सावधानी और देखभाल से पूरी की।

बहाई प्रार्थना

‘‘हे मेरे ईश्वर! मेरे परमेश्वर! अपने सेवकों के हृदयों को एक कर दे और उन पर अपना महान उद्देष्य प्रकट कर। वे तेरी शिक्षाओं पर चलें और तेरे नियमों पर अटल रहें। हे ईश्वर! उनके प्रयास में तू उनकी सहायता कर और उन्हें तेरी सेवा करने की शक्ति प्रदान कर। हे ईश्वर उन्हें उनके स्वयं के ऊपर न छोड़, उनके पगों का, अपने ज्ञान के प्रकाश द्वारा मार्गदर्शन कर और उनके हृदयों को अपने प्रेम से आनंदित कर दे। सत्य ही तू उनका सहायक और स्वामी है।’’

Gujarat: Temple priest kills five, commits suicide


In a shocking incident, a temple priests has killed at least five people and then committed suicide for unknown reasons in wee hours of morning at Eaava village in Sanand taluka near Ahmedabad.

http://in.video.yahoo.com/news-26036098/national-26073656/gujarat-temple-priest-kills-five-commits-suicide-27952271.html#crsl=%252Fnews-26036098%252Fnational-26073656%252Fgujarat-temple-priest-kills-five-commits-suicide-27952271.html

Saturday, January 14, 2012

Indians in Norway aborting girls: study


“Our study seems to indicate that some parents of Indian origin are practising sex-selective abortion,” said researcher Are Hugo Pripp at the national hospital (Rikshospitalet) to newspaper VG.

The study, which looks specifically at the third and fourth children born to mothers of Indian and Pakistani origin from 1969 to 2005, shows that the ratio of girls to boys changed dramatically among Indian-Norwegian mothers after ultrasound scans became available in Norway in 1987.

Before the arrival of ultrasound technology, Indian-Norwegian mothers gave birth to 108 girls for every 100 boys.

After 1987, the ratio fell to 65 girls per 100 boys for Indian mothers while remaining relatively stable at pre-1987 levels for their Pakistani-Norwegian counterparts.

Health Minister Anne-Grete Strøm Erichsen (Labour Party) said she was surprised by the findings, which were initially published in 2010, and would refer the matter to the Norwegian Board of Health Supervision (Helsetillsynet).

“These are surprising numbers. Removing a healthy child because it has the wrong sex – it’s almost impossible to believe,” said Strøm Erichsen. 

“Sex-selective abortion in completely unacceptable. The equality of the sexes is absolutely fundamental.”

ईरान में बहाईयों पर अत्याचार गम्भीर चिन्ता का विषय - डॉ0 (श्रीमती) भारती गान्धी, बहाई अनुयायी

Mrs. Bharti Gandhi
लखनऊ की प्रमुख बहाई अनुयायी डॉ0 (श्रीमती) भारती गान्धी ने ईरान में बहाई धर्मावलम्बियों पर हो रहे विभिन्न अत्याचार पर गम्भीर चिन्ता तथा दु:ख व्यक्त किया है। उन्होने आज जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से यह सूचना दी की ईरान में बहाई धर्म के अनुयाईयों को गैर-कानूनी ढंग से गिरफ्तार करके जेल में बन्द रखने के धोर अमानवीय व्यवहार से भारत का प्रबुद्ध वर्ग बुरी तरह से आहत है। भारत की न्यायिक, प्रशासनिक, मानवाधिकार, शिक्षा, सामाजिक संगठनों, कार्पोरेट जगत आदि से जुड़ी 90 विख्यात तथा प्रबुद्ध हस्तियों ने भी रोष प्रकट करते हुए कहा है कि धार्मिक आस्था के आधार पर बहाईयों के साथ हो रही यह भेदभावपूर्ण कार्यवाही अमानवीय, पूर्वाग्रह से भरी तथा गैरकानूनी है। उन्होंने ईरान के पीड़ित बहाईयों पर हो रही दमनपूर्ण कार्यवाही पर अपनी गहरी सहानुभूति व्यक्त करते हुए भारत सरकार से अपील की है कि वह ईरान सरकार से तुरन्त गैर-कानूनी ढंग से गिरफ्तार किये गये बहाईयों को छोड़ने के लिए दवाब डाले।

डा0 गान्धी ने बताया कि 7 बहाईयों को गिरफ्तार करके तेहरान की जेल में मई 2008 से डाल दिया गया है। ईरान सरकार के सुरक्षा कर्मियों द्वारा बहाईयों के घरों में छापा मारकर उनकी बहाई धर्म की पवित्र पुस्तकों, कम्प्यूटर्स, फोटो आदि जब्त कर लिये गये। इन बहाईयों में से कुछ के परिवारजन तथा मित्र नई दिल्ली में निवास कर रहे हैं। ईरान में बहाई धर्म के अनुयायियों की बिना पूर्व सूचना के हो रही गिरफ्तारियां बहाईयों के सहनशील दृष्टिकोण तथा धार्मिक आस्था की स्वतन्त्रता के खिलाफ है। यह सारे विश्व के मानवीय एवं विचारशील लोगों के लिए चिन्ता का विषय है। हाल ही में उत्पीड़न का सिलसिला इतना बढ़ गया है कि बहाई विद्यार्थियों पर हमले, मीडिया में उनके खिलाफ झूठी बातें फैलाना, उनके घरों तथा दुकानों को क्षति पहुंचाना, उन्हें जीवन यापन की आम जरूरतों से वंचित रखना और उन्हें विश्वविद्यालय से बेदखल करना आदि बातें आम हो गई हैं। ईरानी सरकार की मिलीभगत से बहाई समाज पर दिन-ब-दिन अत्याचारों का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है।

ईरान स्वयं एक अन्तर्राष्ट्रीय समझौते पर हस्ताक्षर कर चुका है जिसके तहत हर व्यक्ति को अपना मनचाहा धर्म अपनाने की स्वतन्त्रता है और उसके साथ इस मामले में कोई जोर जबरदस्ती नहीं की जा सकती है। बहाई धर्म के जन्म स्थल ईरान में बहाईयों के साथ इस तरह की धार्मिक घृणा तथा भेदभाव से भरी दमनपूर्ण कार्यवाही दुखदायी है। ऐसे समय जब सारा विश्व पूरी धार्मिक स्वतन्त्रता, एकता, शान्ति तथा मित्रता के साथ एक-दूसरे के साथ हिलमिल कर रहते हुए नये युग में जी रहा है। जबकि ईरान में बहाईयों पर सिर्फ उनके धर्म के आधार पर विभिन्न प्रकार के अत्याचार किए जा रहे हैं।

ज्ञातव्य हो कि भारत तथा अन्य देशों में बहाई सहित अन्य धार्मिक समुदायों को अपने धर्म के प्रति आस्था व्यक्त करने की पूरी स्वतन्त्रता है, जबकि इनमें से कई देश धर्मनिरपेक्ष भी नहीं हैं। एक सभ्य विश्व समाज में ईरान सरकार का बहाईयों के प्रति इस तरह का अन्यायपूर्ण, कठोर तथा जातिवादी दृष्टिकोण स्वीकार करने योग्य नहीं है। यह दुखदायी स्थिति सह-अस्तित्व अर्थात समानता के साथ जीने के अधिकार का घोर हनन है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

Tuesday, January 10, 2012

गुजरात में बच्चों और किशोरों के लिए सम्मेलन का आयोजन

बच्चों और किशोरों के लिए अहवा क्लस्टर में आयोजित सम्मेलन में भाग लेने वाले मित्रगण
गुजरात में अहवा क्लस्टर द्वारा 4 दिसम्बर 2011 को बच्चों और किशोरों के लिए एक सम्मेलन का आयोजन किया। इस यादगार सम्मेलन में सात सौ बच्चों और किशोरों सहित लगभग एक हजार मित्रों ने भाग लिया। अभिभावक, बहाई समुदाय के सदस्य और साथ ही साथ जिज्ञासुओं के समुदाय से यह प्रतिबिम्बित हो रहा था कि कैसे इन शैक्षिक प्रक्रियाओं ने समुदाय और लोगों के मन में अपनी जड़े जमा ली हैं। इस कार्यक्रम को सफल बनाने में क्लस्टर स्तर की एजेंसियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अभिभावकों, बहाइयों और विस्तृत समुदाय से मित्रों को आमंत्रित किया, जिसमें से बहुत से मित्रगण इस यादगर समारोह के साक्षी बने। बहाई समुदाय ने दान, परिवहन सहायता आदि से इस कार्यक्रम को अपनी मदद प्रदान की। स्थानीय अनुयायियों और जिज्ञासुओं के बीच में बहुत उत्साह देखने को मिला, उन्होंने इस कार्यक्रम को सफल बनाने में अपने सभी प्रयास किये। विस्तृत समुदाय से आमंत्रित एक अतिथि जो एक स्कूल के प्रधानाचार्य थे, उन्होंने बताया कि उनके विद्यालय के बहुत से विद्यार्थी इन कक्षाओं में भाग ले रहे हैं और जिसका परिणाम उनके स्वभाव से झलकता है। उन्होंने कहा कि पहले बहुत से विद्यार्थी उनके पास अपने पैन, पैंसिल, रबड़ आदि खोने की शिकायत लेकर आते थे, लेकिन अब इसके विपरीत वे उन्हें मिली हुई चीजों को लौटाने के लिए आते हैं, जो उनकी नहीं होती हैं। एक बहाई वक्ता ने बताया कि ये बच्चों की कक्षायें बच्चों के हृदयों एवं मस्तिष्कों का पोषण करती हैं और किशोरों में ऊर्जा प्रवाहित करती हैं। नई सभ्यता निर्माण में शिक्षकों और अनुप्रेरकों के त्यागपूर्ण सहयोग को भी उन्होंने प्रोत्साहित किया। प्रशिक्षण संस्थान मण्डल ने इस कार्यक्रम को सफल बनाने में अपना योगदान देने वाले सभी मित्रों का आभार व्यक्त किया।

बैंगलोर के बहाई प्रतिनिधिमण्डल की कर्नाटक के राज्यपाल से भेंट

दायें से बायें : श्री दिनेश राव, डॉ. अहमद अंसारी, महामहिम राज्यपाल डॉ. एच. आर. भारद्वाज और श्रीमती माला मल्लिकार्जुन
बैंगलोर का बहाई प्रतिनिधिमण्डल जिसमें डॉ. अहमद अंसारी, श्रीमती माला मल्लिकार्जुन और श्री दिनेश राव शामिल थे, कर्नाटक के राज्यपाल महामहिम डॉ. एच. आर. भारद्वाज से बैंगलोर के राजभवन में मिले। प्रति- निधिमण्डल ने उन्हें एक पुस्तकों का सेट भेंट किया, जिसमें अतुल्य भारत, वन कंट्री, बहाई अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का दस्तावेज आदि शामिल थे। डॉ. भारद्वाज को सब कुछ विस्तार से बताया गया और बहाई उपासना मन्दिर की रजत जयंती के बारे में जानकर वह बहुत हर्षित हुए। इस अवसर पर उन्होंने बहाई समुदाय को एक संदेश भी दिया- ‘‘मैं यह जानकर अत्यंत प्रसन्न हूँ कि बैंगलोर का बहाई समुदाय’’ बहाई उपासना मन्दिर की 25वीं वर्षगांठ का उत्सव मना रहा है, जिसे भारत में लाखों लोग कमल मन्दिर के नाम से भी जानते हैं। मन्दिर एक ‘‘भौतिक संरचना’’ है लेकिन उसका ‘‘आध्यात्मिक प्रभाव’’ है, जिसका वास्तव में जीवन के हर चरण पर शक्तिशाली प्रभाव है। इसका उद्देश्य केवल उपासना करने से पूरा नहीं होता, यह उन लोगों को कार्य करने के लिए प्रेरित करता है जो मानवजाति को पुनर्जीवित करने का काम कर रहे हैं। मन्दिर के अन्दर हम प्रार्थना और ईश्वर की स्तुति करते हैं जो बाहरी दुनिया में दया, संरक्षण, और शिक्षा के रूप में परिवर्तित होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि मानवजाति की सेवा को ऊँचाइयों पर ले जाने हेतु अपनी सेवा देने के लिए मित्रगण प्रोत्साहित होंगे।’’ डॉ. भारद्वाज ने बहाई उपासना मन्दिर और राष्ट्रीय कार्यालय के अपने अनेक भ्रमणों को याद किया। उन्होंने शांति, प्रेम और एकता में योगदान करने वाले मित्रों की प्रशंसा की। उन्होंने प्रतिनिधियों के साथ कुछ समय बिताया तथा धर्म, दर्शनशास्त्र और भारत में शासन पर अपने विचार व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि सभी धर्मों के लिए भारत एक स्वतंत्र देश है, ईरान के बिल्कुल विपरीत जहाँ अल्पसंख्यकों को सताया जा रहा है। डॉ. भारद्वाज ने बहाई प्रतिनिधियों को अपने द्वारा लिखित इंडिया - ए फेलोशिप ऑफ फेथ्सनामक एक पुस्तक उपहार स्वरूप दी और उन्होंने उस पुस्तक पर अपनी हस्तलिपि में कुछ शब्द भी लिखे।

Monday, January 2, 2012

दुर्ग (अछौटी) में बहाई बाल नैतिक कक्षाओं के शिक्षकों एवं का प्रशिक्षण

Preparing the Teachers for Baha'i Children Moral Classes

दुर्ग (अछौटी) में बाल मेले का आयोजन

इस मेले में 150 विद्यार्थियों, 300 अभिभावकों और गांव के सदस्यों सहित लगभग 550 मित्रों ने भाग लिया।

दो दिवसीय परामर्शीय बैठक में सलाहकार श्री ओमीद सीयोशानसीयन

Mr. Omid Seioshanseian with the participants of the Meeting held in Bhopal

4 New Baha'i Children Classes started in Bhopal

With the efforts of Ms. K. G. Omna, 4 new classes started in Hathaikheda with total 45 participants.

Baha'i Message shared with the Mayor of Raipur

Shrimati Kiranmayi Nayak (Mayor of Raipur) was shared with the Baha'i Message

Core Activities in Charama Cluster, Chattisgarh

Ruhi Campaign was organized in Tarasgaon from 24th to 30th November 2011. Around 15 participants participated. Door to door teaching was also done in this cluster.

भोपाल में आयोजित क्षेत्रीय संस्थागत बैठक सम्पन्न

सलाहकार श्री ओमीन सियोशानसीयान और श्रीमती ग्लोरीया जावेद ने मार्गदर्शन दिया

भोपाल में संपन्न हुवा क्षेत्रीय सम्मेलन

भोपाल में क्षेत्रीय सम्मेलन

श्री दत्ता साहू

श्रीमती जीना सोराबजी
क्षेत्रीय बहाई परिषद द्वारा आयोजित दो दिवसीय क्षेत्रीय सम्मेलन भोपाल में 15 एवं 16 अक्टूबर-2011 को बड़े ही उत्साह एवं आध्यात्मिक स्वरूप के साथ सम्पन्न हुआ। इस दो दिवसीय सम्मेलन में कुल 112 मित्रों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवायी। परिषद के द्वारा तैयार किये गये कार्यक्रम के अनुसार पहलें दिन के कार्यक्रम की अध्यक्षता एवं संचालन सहायक मण्डल सदस्य सुश्री के.जी. ओमना द्वारा किया गया। कार्यक्रम की शुरूआत प्रार्थनाओं से करने के बाद संस्थाओं से सम्बन्धित रिजवान सन्देश-2010 एवं 28 दिसम्बर-2010 प्रपत्र से चयन किये गये अनुच्छेदों का अध्ययन छोटे-छोटे समूहों मे किया गया एवं अपने अनुभव मित्रों ने बताये, कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए उत्तर प्रदेश से पधारे डॉ. आर.एस. यादव ने बहाई संविदा पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। दोपहर के भोजनोपरांत पंचगनी महाराष्ट्र से पधारे श्री दत्ता साहू ने युवाओं को मूल गतिविधियों से जुड़ने हेतु प्रभावपूर्ण प्रस्तुति दी जबकि राष्ट्रीय कोष संवर्धक डॉ. नेसॉन ओलियाई बहाई कोष पर अपने विचार व्यक्त करते हुए आकर्षक पॉवर प्वाइंट द्वारा उपस्थित मित्रों को दान की महिमा के बारे में बताया। यह सौभाग्य की बात थी कि 15 अक्टूबर की शाम 19 दिवसीय सहभोज मनाया जाना था, यह कार्य परिषद ने स्थानीय आध्यात्मिक भोपाल को यह सोचते हुए सौंपा कि मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के दूरदराज से आए ऐसे बहाई मित्र जो 19 दिवसीय सहभोज को सुचारू रूप से मनाये जाने में प्रयासरत है उन्हें इस कार्यक्रम से सहभोज का आयोजन करने में सहयोग मिलेगा। कार्यक्रम के अंत में युवाओ ने सांस्कृतिक कार्यक्रम की जोरदार प्रस्तुति देकर मित्रों को मंत्रगुग्ध किया। सम्मेलन के दूसरे एवं अंतिम दिन के कार्यक्रम की अध्यक्षता एवं संचालन सहायक मण्डल सदस्या श्रीमती अलका कुमार द्वारा किया गया। राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभा की सदस्य डॉ. शिरीन महालाती ने ‘दिव्य प्रशासनिक व्यवस्था एवं परिषद का चुनाव’ विषय पर पॉवर प्वाइंट प्रस्तुति देते हुए हुए क्षेत्रीय बहाई परिषद का चुनाव भी सम्पन्न कराया। तदोपरान्त राष्ट्रीय सभा की सदस्य श्रीमती जीना सोराबजी ने ‘हुकुकुल्लाह’ पर आकर्षक एवं प्रभावपूर्ण पॉवर प्वाइंट प्रस्तुति देते हुए मित्रों का ज्ञानवर्धन किया तदोपरांत परिषद सचिव एस.एन. पटेल द्वारा परिषद की वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। कार्यक्रम के अंत में परिषद कोषाध्यक्ष डॉ. एफ.यू. शाद द्वारा कोष संबंधी वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई एवं उपस्थित सभी मित्रों एवं अतिथियों का आभार व्यक्त किया गया।