Wednesday, March 3, 2010

राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभा की ओर से आपको सम्मान (शरफ) माह की शुभकामनाएँ !

परमप्रिय मित्रों,

भारत के विभिन्न समुदायसमूहों में 138 सघन विकास कार्यक्रम आरम्भ हो चुके हैं। आइये, हम एक बार फिर सघन विकास कार्यक्रम की आवश्यकता पर प्रकाश डालें। हम यह जानते हैं कि सघन विकास कार्यक्रम एक सीधा, सरल और प्रभावी कार्यक्रम है।

अंतर्राष्ट्रीय शिक्षण केन्द्र द्वारा तैयार प्रपत्र ''बढ़ता संवेग : विकास के प्रति एक सुव्यवस्थित पहल'' में कहा गया है, ''क्षेत्र के सभी निवासियों तक पहुँचने के लिये हम बहाउल्लाह के पावन शब्दों से प्रेरित होते हैं: ''इस युग में स्वर्ग आैर पृथ्वी से भी अधिक विशाल एक द्वार खुला है।'' अपने सामुदायिक जीवन के प्रवेश द्वारों को बाहर की दुनिया के लिये खोलने के गहन प्रयास के लिये साहस और कल्पनात्मकता, दोनों की जरूरत होती है।''

जो मित्र सघन विकास कार्यक्रम में भाग लेते हैं उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि उनका उद्देश्य बहाउल्लाह के प्रकटीकरण को मानवजाति तक पहुँचाना है और प्रभुधर्म के संदेश के माध्यम से उनके आध्यात्मिक और भौतिक विकास का मार्ग प्रशस्त करना है। इसलिए स्वाभाविक निष्कर्ष यह निकलता है कि जब कोई समुदायसमूह अपना सघन विकास कार्यक्रम आरम्भ करता है तो वह उसके लिए एक आनन्दमय समारोह का अवसर होता है। जिन समुदायसमूहों में उच्च उत्साह और मजबूत समझ होती है वह सघन विकास कार्यक्रम आरम्भ करने के लिए तैयार हैं।

पश्चिम बंगाल के एक विशेष समुदायसमूह के उत्साह, उल्लास और सघन विकास कार्यक्रम आरम्भ करने के दौरान अपनत्व की भावना को प्रकट करने का एक रमणीय उदाहरण है। जिस दिन सघन विकास कार्यक्रम आरम्भ होना था, समुदायसमूह एजेंसियाँ और सहयोगी संस्थायें एक साथ शामियाने (टेन्ट) में एकत्रित हुईं, जहाँ कार्यक्रम आरम्भ होना था। जब स्थानीय बहाइयों के आने का इंतजार कर रहे थे, तभी उन्होंने कुछ दूर से आती ढोल, नारे और शंख ध्वनि सुनी। इस क्षेत्र में राजनीतिक गतिविधियों को देखते हुए उन्होंने समझा कि यह कोई राजनीतिक जुलूस है। लेकिन जैसे-जैसे आवाज तेज होती गई और करीब आती गई, वैसे-वैसे उन्होंने यह महसूस किया कि सघन विकास कार्यक्रम के शुभारम्भ के अवसर पर इस जुलूस में बहाई सदस्यों के साथ गांव के दूसरे मित्रगण भी शामिल थे। वहाँ एक बड़ा बैनर भी था जिस पर लिखा था ''पहले सघन विकास कार्यक्रम का शुभारम्भ''।

अधिक से अधिक गांव वाले इसमें शामिल हो गए और जल्द ही इन लोगों की संख्या दो सौ हो गई, जो इस आनन्दमय समारोह का हिस्सा बने। अन्तत: जुलूस समाप्त हुआ, सभी शामियाने में आ गए और कार्यक्रम आरम्भ हुआ।

मित्रों ने अपने अनुभव एक दूसरे से बांटे कि किस प्रकार उन्होंने अपनी मूलगतिविधियां आरम्भ की, बच्चों की कक्षा के शिक्षकों ने कक्षा के प्रतिभागी बच्चों में हुए परिवर्तन के बारे में बताया जो उन्होंने कक्षा के परिणामस्वरूप् हासिल किये, किशोरों के समूह के अनुप्रेरकों ने भी इसी प्रकार बताया। बच्चों और किशोरों के अभिभावकों ने उनमें देखे गए परिवर्तन के बारे में बड़े ही गर्व के साथ बताया। कक्षाओं में भाग लेने वाले बच्चों और किशोरों ने एक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया। गीत और नाटक के बाद सम्बन्धित संदेश का अध्ययन किया गया।

कार्यक्रम सम्पन्न हुआ, वहां एक बड़ा सहभोज था जिसमें प्रत्येक आमंत्रित थे। गांव वालों ने, बहाई और जिज्ञासु दोनों ने मिलकर चावल और अन्य सामग्री तैयार की और सबने बड़े चाव से खाया। संस्थानों के उपस्थित सदस्यों में से एक ने कहा कि मित्रों की इस प्रकार की संयुक्त भागीदारी देखकर यह कहना मुश्किल है कि कौन बहाई है और कौन नहीं।

यह समारोह केवल बहाइयों के लिए नहीं था, यह गांव की घटना थी और एक गांव में दो सौ से अधिक लोगों के लिए यह समारोह था। स्पष्ट है कि यह सघन विकास कार्यक्रम केवल बहाइयों के लिए ही नहीं बल्कि प्रत्येक के लिए है।

प्रसन्नता की बात है कि अपनेपन और प्रतिभागिता की समझदारी के कारण वहां पर किसी भी गतिविधि को आगे ले जाने की दिशा में किसी प्रकार का विरोध नहीं किया गया है। यद्यपि, यह स्पष्ट है कि जो ऊपर लिखा गया है वह हर समुदायसमूह में लागू नहीं होगा। हमारे प्रिय धर्मसंरक्षक शोगी एफेंदी का यह एक सुन्दर, वास्तविक उदाहरण है ''ईश्वर का घर सभी के लिए है।''

''बढ़ता संवेग'' प्रपत्र के जरिये हम याद दिलाना चाहते हैं कि हमारे वर्तमान शिक्षण प्रयासों का यह आधार है कि समस्त मानवजाति बहाउल्लाह की ओर उन्मुख हो रही है। खुलेपन के व्यवहार को अपनायें और संकोच की उन रेखाओं को समाप्त करें जो कभी-कभी अनुयायियों के माथे पर उभरती हैं, ताकि निसंकोच विशाल जनसमूह में हम बेझिझक प्रभुधर्म का संदेश दे सकें। राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभा का प्रेम आप प्रत्येक के साथ है जो योजना के बचे महीनों में सेवा के काम में जुटे हैं।

बहाई शुभकामनाओं के साथ

भारत के बहाइयों की राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभा
महासचिव
नाज़नीन रौहानी

भग्वद वाणी


''हे ईश्वर ! विषमता और दुराव के जो भी तत्व हैं उन्हें दूर कर दो और हमें वह दो जो एकता और परस्पर प्रेम का कारण बनते हों। हे ईश्वर ! हमारे ऊपर स्वर्गिक सुरभि की वर्षा करो और इस सम्मेलन को स्वर्ग के सम्मेलन में परिणत कर दो। हमें प्रत्येक लाभ आैर प्रत्येक खाद्य पदार्थ दो। हमारे लिये प्रेम का भोजन तयौर करो। हमें ज्ञान का भाजेन दो, हमारे ऊपर स्वर्गिक प्रकाश के भाजेन रूपी आशीष की वर्षा करो।'' -अब्दुल-बहा

19 दिवसीय सहभोज समाचार पत्र


 
नाज़नीन खानोम
19 जनवरी, 2010 बहाई माह : सुल्तान : (सम्प्रभुता) बहाई वर्ष - 166

इस महीने की 7 तारीख को नई दिल्ली स्थित बहाई भवन में एक प्रेस सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसे बड़े पैमाने पर मीडिया कवरेज मिला, जाने-माने अखबारों और टेलिविजन चैनलों ने प्रेस कांफ्रेंस को कवर किया।

हम जब ईरान स्थित बहाई मित्रों पर किये जाने वाले अत्याचार को कम करने और खत्म होने की राह जोह रहे हैं, आइये विश्व न्याय मन्दिर के उस पत्र की कुछ पंक्तियों पर चिन्तन करें जो सर्वोच्च संस्था ने प्रभुधर्म के उस पालने में रह रहे अनुयायियों को जुलाई 2008 में लिखा था। ये पंक्तियां हमारे लिये भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं, जितनी ईरान के हमारे मुसीबतज़दा बहाइयों के लिये : ''अत:, प्रयास के इस पथ पर उत्साह और दृढ़ता के साथ निरन्तर लगे रहें। जब आप ऐसा करें तब प्रत्येक मानव की अच्छाइयों को देखें, चाहे वह अमीर हो या गरीब, पुरुष हो अथवा स्त्री, वृध्द हो या युवा, शहर का रहने वाला हो या गांव का, कामगार हो या मालिक, बिना नस्ल अथवा धर्म का भेद किये हुए। गरीबों और वंचितों की मदद करें। युवा जनों की जरूरतों पर ध्यान दें और भविष्य के प्रति उन्हें आस्थावान बनायें, ताकि मानवजाति की सेवा के लिये वे अपने आप को तैयार कर सकें।

अपने सहयोगी नागरिकों के समक्ष पूर्वाग्रहों से लड़ने के अपने अनुभव रखने के हर एक
अवसर का लाभ उठायें और प्रेम तथा मैत्री के बंधन को मजबूत करने में उनका सहयोग करें और इस प्रकार अपने देश की प्रगति में तथा इसके लोगों की समृध्दि में अपना योगदान दें।''

बहाई शुभकामनाओं के साथ

भारत के बहाइयों की राष्ट्रीय आध्यात्मिक सभा
नाज़नीन रौहानी
महासचिव